SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५३ श्री संवेगरंगशाला देव बना। कुरुचन्द्र भी ऐसी उत्तम धर्म की करणी से रहित अज्ञानादि प्रमाद वाला आतध्यान में प्रवृत्ति करके मरकर अनेक बार तिर्यंच भव में जन्म लिया । वहाँ से निकल कर महाजंगल में भील हुआ, वहाँ समूह के साथ विहार करते साधुओं को देखा । 'कहीं पर ऐसे साधुओं को मैंने पूर्व में देखा है' । ऐसा एकान्त में चिन्तन करते उसमें लीन बने जाति स्मरण ज्ञान हआ और अपना पूर्व जन्म देखा, तब महान् गुणरूपी रत्नों के भण्डार को अपने घर में रखा था उन मुनियों की स्मृति याद आई, और उन्होंने बार-बार धर्म-उपदेश भी सुनाया था। इससे वह चिन्तन करने लगा कि-उन महामहिमा वाले उपकारी गुरूदेवों ने उस समय मुझे उपदेश दिया था, फिर भी मैंने धर्म में उद्यम नहीं किया। जो कि महानुभाव राजा ने भी उपकार के लिए अपने घर में गुरू महाराज को रखा था, तो भी मुझे उपकार नहीं हुआ। ऐसे भारी कर्मी मुझे अब वैसी सद्धर्म की सामग्री किस तरह मिलेगी ? अथवा ऐसा अधिक चिन्तन करने से क्या लाभ ? ऐसी स्थिति में रहकर भी मैं शीघ्र अनशन करके और मन में जगत् गुरू श्री अरिहंत परमात्मा के शासन को धारण करके उसी आचार्य श्री का ध्यान करते मैं कार्य सिद्ध करूँ। इस तरह निष्कलंक सम्यक्त्व को प्राप्त करके कुरुचन्द्र भिल्ल चारों आहार का त्याग कर मरकर सौधर्मकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ। ___इस तरह कूरुचन्द्र के चारित्र से दूसरे के दबाव से भी साधओं को दिया हुआ बस्ती दान प्रायः कर परभव में भी कल्याण को करता है। इसलिए पंडित पुरुष सर्व संग-परिग्रह से मुक्त, देवों से भी पूजित और जगत् के जीवों का हित करने वाला साधुओं को बस्ती देने में विरोध कैसे करे ? साधुओं को बस्ती देने से उनका सन्मान होता है, इससे आत्मा की (बुद्धि की) विशुद्धि होती है, इससे निष्कलंक चारित्र की आराधना होती है, इससे कर्मों का विनाश होता है और अन्त में निर्वाण पद प्राप्त करता है। तथा कई जीव सौम्य प्रकृति वाले मुनियों के दर्शन से, अन्य कोई उनके धर्म उपदेश से और कोई उनकी दुष्कर क्रिया को देखकर भी प्रतिबोध प्राप्त करते हैं, और जिसने बोध प्राप्त किया वे दूसरे को प्रतिबोध करते हैं । जैन मन्दिर बनाये, साधार्मिक वात्सल्य करे, और साधुओं को विधिपूर्वक शुद्ध दान दे, इसी तरह तीर्थ (शासन) की वृद्धि-उन्नति हो, नये साधुओं की धर्म में स्थिरता हो, शासन का यश बढ़े और जीवों को अभयदान मिलता है, इसलिए बस्ती दान में उद्यम करना चाहिये। इस प्रकार राजा भी बस्ती का दान देकर गुरू महाराज के पास से धर्म सुनकर हमेशा विशेष धर्म कार्यों में प्रवृत्ति करे । अब इस सम्बन्ध में अधिक वर्णन करने से क्या ?
SR No.022301
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmvijay
PublisherNIrgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1986
Total Pages648
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy