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________________ शब्दार्थ:- इरि - इरिवहियाके, उस्सग्ग = कायोत्सर्ग का, पमाण = प्रमाण, इरि - उस्सग्ग-पमाणं = इरियावहिया के कायोत्सर्ग का प्रमाण, पणवीस = पच्चीस, उस्सास = श्वासो च्छवास, पण वीसुस्सास = पचीस श्वासो च्छवास, सेसेसु = बाकी के (कायोत्सर्ग का प्रमाण), अट्ठ = आठ, महुर = मधुर, सई = शब्द, महुरसई =मधुर शब्द वाला, महत्थ = महा गंभीर अर्थ, जुत्तं युक्त, महऽत्थ-जुत्तं महान अर्थयुक्त, थुतं-स्तवन ||५८॥ विशेषार्थ:- चैत्यवंदन में इरियावहिया के कायोत्सर्ग का प्रमाण २५ श्वासोच्छवास के समय जितना है। कारण कि ये काउस्सग्ग नचंदेसु निम्मलयराव तक के २५ चरणपाद जितना है। पायसमा उस्सासाङ्ख इस वचन से १ पाद के उच्चार बराबर १ श्वासोच्छवास का काल है। लेकिन नासिका दारा लियाजाने वाला श्वासोच्छ्वास यहाँ प्रमाणभूत नही है | तथा बाकीके अरिहंत चे. के तीन काउस्सग्ग एवं वेयावच्चगराणं का एक काउस्सग्गये ४ काउस्सग्ग १-१ नवकार के होते हैं। एक नवकार की आठ संपदाएँ हैं, एक एक संपदा एकैक पादतुल्य है, इसलिए चारों काउस्सग्ग आठ आठ श्वासोच्छ्वास प्रमाण के समजना। तथा जावंति चे. और जावंत केवि साहू के बादमें जो स्तवन बोला जाता है, वह गंभीर अर्थयुक्त और मधुरध्वनि पूर्वक गाना चाहिये। (गंभीर अर्थ याने भक्ति ज्ञान और बैराग्य को उत्पन्न करे वैसा, तथा अल्प अक्षर वृंद से अधिक अर्थ निकले वैसा होना चाहिये) विशेषतः पूर्वाचार्यों द्वारा रचित स्तवन बोलना चाहिये । तथा स्तवन की रचनाएँ भिन्न आचार्यों द्वारा की गयी होती है, इसलिए यही स्तवन बोलना चाहिये ऐसा नियत नहीं है,अतः चैत्यवंदन भाष्यादि में स्तवन को सूत्रों के साथ नहीं गिना है। ___२. स्तवन व्यक्तिगत भावना को बाहर लाने का एक माध्यम है। और जिनमंदिर में दर्शन पूजा विगेरे शास्त्रोक्त समयानुसार नहीं कर सकें, फिरभी अनुकुलता के अनुसार जबभी जिनालय आवें, तब आनेवाला व्यक्ति अपने हृदयोद्गार मधुर ध्वनि में प्रगट कर सकता है । ऐसी सर्व प्रकार की भक्ति को जैनो के सार्वजनिक भक्तिस्थानों में स्थान होना ही चाहिये। इसलिए स्तवनादिक मनमें बोलना चाहिये, ऐसे बोर्ड कितनेक स्थानोपर लगे हुए होते हैं । वो उचित नहीं है। 74)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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