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________________ प्रत्याख्यान पारने के बाद यदि ज्ञात हो जाता है कि अभी पोरिसी का समय नही हुआ है तो पूर्ववत् विवेक रखकर समय पूर्ण होने पर भोजन विगेरे ग्रहण करना चाहिये । 6. सव्वसमाहि वत्तियागरेण: तीव्र शूलं विगेरे वेदना से अत्यंत पिडीत व्यक्तिं को अतिपीड़ा के कारण आर्तध्यान और रौद्रध्यान होने की संभव है। और ऐसे दुर्ध्यान से तो जीव दुर्गति में जाता है। इस प्रकार के दुर्ध्यान को रोकने के लिए औषधि आदि लेने के लिए कोई वेदना से व्याकुल जीव पोरिसी आदि का प्रत्याख्यान समय से पूर्व पारता है, तो भी पच्चवखाण का भंग नही होता है। उसे सव्वसमाहि वत्तिया गारेणं आगार कहा जाता है। ( यहां दुर्ध्यान के सव्व = सर्वथा अभाव से समाहि = समाधि याने शरीर की स्वस्थता रुप वित्तिय प्रत्यय हेतु कारणवाला आगारेण आगार से पच्च० का भंग नही = - = होता है ) अथवा वेदना से व्याकुल साधु विगेरे धर्मी आत्माओं का उपचार करने के लिए जानेवाला वैद्य भी अपूर्ण काल में पोरिसी विगेरे का प्रत्याख्यान पारता है तो उसे भी पच्चवखाण का भंग नही होता है । अतः ये आगार साधु आदि के लिए तथा वैद्य के लिए भी है। (धर्म सं-वृत्ति, प्रव० सारो० वृत्ति आदि) ७. महत्तरा गारेणं :- प्रत्याख्यान से होने वाली निर्जरा से भी अधिक निर्जरा का लाभ मिलता हो, वैसा संघका, जिनालय का या ग्लान मुनि आदि के वैयावच्च का कोई महत्व का कार्य आगया चहो, और वो महान कार्य किसी अन्य के द्वारा होना संभव न हो, ऐसे प्रसंग पर पोरिसी आदि प्रत्याख्यान समय से पूर्व पारना पड़े, फिरभी पच्चवखाण का भंग न हो उसे महत्तरा गारेणं आगार कहा जाता है । ८. सागारि आगारेणं :- इस आगार का प्रयोग एकाशने में होता है । सागारी ( मुनि की अपेक्षा से) कोई भी गृहस्थ, (श्रावक की अपेक्षासे) ऐसी व्यक्ति कि जिसकी द्रष्टि से भोजन न पचे (= कुद्रष्टि वाला व्यक्ति) तात्पर्य यह है कि मुनि को गृहस्थ के देखते हुए भोजन नही करना चाहिये । ऐसी साधु समाचारी है । यदि एकाशने के समय गृहस्थ आजावे और वो अधिक समय तक रुकता है तो मुनि को उस समय भोजन नही करना चाहिये । और लगे कि ये व्यक्ति यहाँ से लम्बे समय तक जानेवाला नही है, तो भोजन करते करते बीचमें उठकर अन्यत्र जाकर 'भोजन करे, फिर भी प्रत्याख्यान का भंग नही होता है, उसे सागारिआगारेणं आगार कहते हैं । 170 =
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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