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________________ संकेत पच्च० रात्रि प्रत्याखखयन ( दिवस चरिम) मुनि को तिविहार चउविहार, श्रावक को दुविहार, तिविहार, चउविहार, मुनि को चउविहार श्रावक को दुविहार, तिविहार, चउविहार, लेकिन (एकाशनादि विशेष प्रतों में चउविहार) एकाशनादि व्रतों में जहाँ जहाँ दुविहार की बात कही है। वहाँ वहा मुनि को तो किसी गाढ कारण से ही होता है, और श्रावकों को भी विना कारण दुविहार नही करना चाहिये। विशेषतः तिविहार या चउविहार ही करना चाहिये । *** अवतरण:- अब तीसरा आहार द्वार कहा जारहा है। इस गाथामें चार प्रकार के आहार में से प्रथम आहार का लक्षण बताया जारहा है । - खुहपसम खमेगागी आहारि व एइ देइ वा सायं । खुहिओ व खिवड़ कुडे, जं पंकुवमं तमाहारो ॥ १३ ॥ शब्दार्थ:- खुद्ध = क्षुधाको, पसम= उपशांत करने में, खम = समर्थ, एगागी अकेला, व = अथवा, एवं आता हो, खुहिओ क्षुधावाला, भूखा खिवड़ = प्रक्षेपे, डाले, कुट्ठे = उदर में पेट मे, पंक= किच्चड़, उवमं समान, तं उस द्रव्य पदार्थ, = = = गाथार्थ: जो अकेला होने पर भी क्षुधा को शांत करने में समर्थ हो, अथवा आहार में आता हो, या आहार का स्वाद देता हो किच्चड़ के समान जिस निरस द्रव्य पदार्थ को भूखा व्यक्ति उदर में प्रक्षेपे (खाला है उसे ) ( इन चारों लक्षणवाला द्रव्य) आहार कहा जाता है. ॥ १३ ॥ भावार्थ:- जो पदार्थ अन्य द्रव्य में मिश्रित न होता हो, और अकेला ही क्षुधा को शांत करने में समर्थ हो, ऐसा पदार्थ आहार में आता है । इस लक्षण वाला आहार चार प्रकार का है। (१) अशन = रांधेहुए चाँवल विगेरे पदार्थ । (२) पान = जल तथा छास की आस (छास का पानी) विगेरे । (३) खादिम = पान, फल, गन्ना विगेरे । (४) स्वादिम = सूंठ, हरड़े, पीपरामूल विगेरे । ॥ ये आहार का प्रथम लक्षण है। 157
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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