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________________ भावार्थ:- दादशावर्त वंदन में दूसरीबारके वांदणे में आवसिआए पदका उच्चार नहीं करना । इस प्रकारकी परंपरा पूर्वाचार्यों से चली आरही है। वैसे ही एकासन बीआसन. -एकलठाण आयंबिल - नीवि और उपवास विगेरेके पच्चक्खाणके प्रारंभमें एक ही बार सूरे उग्गए अथवा उग्गरसूरे शब्द यथायोग्य बोलना और अंतमें एक ही बार वोसिरइ शब्द बोलना चाहिये। लेकिन इन पच्चक्खाणोंके आलापकोंमें मध्यमें आनेवाले विगइ एकाशनादि और पाणरस के छोटे आलापकों में प्रत्येक प्रत्याख्यानके प्रारंभमें उपरोक्त दोनों ही पद यधपि संबंध वाले होने पर भी उनका उच्चार नहीं करना, ये पूर्वोचार्यों से चली आरही करणविधि अथवा परंपरा है। . . अवतरण:- इस गाथा में पाणस्स के आगार का आलापक कब उच्चारना चाहिये? | उस विषय में उच्चारविधि दर्शाते हैं। तह तिविह पच्चखाणे भन्नति य पाणगस्स आगारा । दुविहाहारे अञ्चित-भोइणो, तह य फासुजले ॥१०॥ शब्दार्थ:- गाथार्थ के अनुसार सुगम है। . . . | गाथार्थ:- तथा तिविहार के प्रत्याख्यान में (अर्थात् तिविहार उपवास एकाशन विगेरेमें:) 'पाणरस के आगार (आलापक) उच्चरने में आते हैं। तथा एकाशनादि दुविहार वाले हो, तो उसमें भी करने वाले अचित्त भोजन को 'पाणस्स के आगार करना, तथा | | एकाशनादि प्रत्याख्यान रहित श्रावक यदि उष्ण जल पीने का नियमवाला हो तो उसे भी । ___ १: (१. यहाँ पाणस्स के आगार उच्चराने के विषय में श्री ज्ञानविमलसूरिजी कृत बालावबोध | में निम्न चतुर्भगी कहीं है :१. सचित्त भोजन - सचित्त जल (इसमें पानी के आगार नहि). .... | २. सचित्त भोजन - अचित्त जल (इसमें पानी के आगार होते हैं) ... " ३. अचित्त भोजन - सचित्त जल (इसमें पानी के आगार नहि) . ४. अचित्त भोजन - अचित जल (इसमें पानी के आगार होते हैं).... तात्पर्य यह है कि - एकाशनादि जिन जिन व्रतोंमें तिविहार हो सकता है, उन उन व्रतों. तिविहार में (अचित्त भोजन और) अचित्त जल पीना चाहिये, और पाणस्स के आगार उच्चरना चाहिये । यदि उन पच्चक्खाणो में (एकाशनादि में) दुविहार किया हो तो दुविहार में वैसा नियम नहीं । किस व्रत में दुविहार तिविहार या चउविहार होता है, उसे १२ वीं गाथा में दर्शाया जायेगा। .. -- - - (153
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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