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वखाण कराया जाता है। और इसी अध्या प्रत्याख्यानके साथ अंगुहसहियं अथवा मुहिसहियं इत्यादि ८ प्रकार के संकेत पच्चक्खाणमें से कोई एक प्रकारका संकेत पच्चवखाण भी कराया जाता है। इसलिए इन दोनोंका संयुक्तरुपसे एक ही आलापक उच्चारपाठ १३ शब्द का फेरफार वाला है, अतः प्रथम उच्चार स्थान १३ प्रकारका गिना जाता है।
तथा विगइत्यागका एक ही आलापक विगइके प्रत्याख्यानके लिए विगइ शब्द से, आयंबिलके प्रत्याख्यानके लिए आयंबिल शब्दसे, नीवि के पच्चक्खाणके लिए निविगइ शब्दसे कराया जाता है । अतः विगइत्याग रुप तीसरा उच्चारस्थान तीन प्रकार का है। . तथा चौथे उच्चार स्थानमें पाणी संबंधि और पांचवें उच्चार स्थानमें देसावगासिक (अथवा दिवसचरिम) संबंधि एक एक शब्द रुप एकैक प्रकारका एक एक आलापक होनेसे इस गाथा में इन दो उच्चार स्थानों को स्पष्ट तौर से नही दर्शाया गया है, फिरभी अध्याहार से ग्रहण कर लेना है।
किस पच्चक्खाण में कौनसा स्थान ? उसका संक्षिप्त सार एकाशन में ५ उच्चारस्थान 1 = प्रथम संकेत सहित अध्धा प्रत्याख्यानका बिआसन में ५ उच्चार स्थान = दूसरा विगइका एकलठाणे में ५ उच्चार स्थान तीसरा एकाशनका (एकाशने के लिए)
बिआसनका (बिआसनेकेलिए) एकासणका (एकठाणका एकठाणके लिए) ४. थे पाणस्सका
५. वाँ देसावगासिक 'या दिवस चरिम का आयंबिल में ५ उच्चारस्थान = एकाशने के समान, लेकिन दूसरा उच्चारस्थान
आयंबिल का पच्च० का नीवि में ५ उच्चारस्थान एकाशने के समान लेकिन दूसरा उच्चारस्थान नीवि
का पच्च० का तिविहार १५ उच्चारस्थान = आगे ८ वीं गाथा के अनुसार उपवास में) चउविहार (२ उच्चारस्थान = उपवासका व देसावगासिक का
उपवास में
(देसावगासिक का प्रत्याख्यान चौद नियम धारने वाले को इसके साथ ही उच्चारणे उच्चार में दिया जाता है, और नियम नही धारने वाले को एक उच्चार स्थान कम समझना।
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