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तथा पच्चकखाण देते समय अक्षर की स्खलना हुई हों, याने चउविहार उपवास के पाठ के समय तिविहार पाठ का उच्चार कर दे, अथवा तिविहार उपवास के पच्चक्खाण के समय चडविहार पद का उच्चार हो जाय । या एका शन के स्थान पर बिआसण या बिआसण के स्थान पर एका शन का पाठ भूल से बोलने में आजाय । इस प्रकार पाठों का उच्चार फेरफार युक्त बोलने पर भी पच्चक्खाण तो मन में धारा हुआ हो वही प्रमाण गिना जाता है।
- अवतरण:- इस गाथा में एकाशनादि पच्चक्खाणमें उपयोग आनेवाला पाँच प्रकार का उच्चार स्थान तथा उसके २१ भेदों को दर्शाया गया है।
पढमे ठाणे तेरस, बीए तिनि उ तिगाइ (य) तइयंमि। पाणस्स चउत्थंमि, देसवगासाइ पंचमए IIEI शब्दार्थ:- गाथार्थ के अनुसार सरल हैं।
गाथार्थ:- प्रथम उच्चार स्थान में १३ भेद हैं । दूसरे उच्चार स्थान में ३ भेद है। तीसरे उच्चार स्थान में ३ भेद हैं। चौथे उच्चार स्थान में पाणस्स का १ भेद है। और पाँचवे उच्चार स्थान में देसावगासिक वगैरह का १ भेद हैं । (इस प्रकार पाँचो उच्चार स्थान के कुल २१ भेद हैं। अथवा इन्हें २१ उच्चार स्थान भी कहा जाता है।)
भावार्थ:- यहाँ 'एकाशनादि बडे प्रत्याख्यानों में अंतर्गत उपसे जो अलग अलग पांच प्रकार के प्रत्याख्यान उच्चारने में आते हैं, उन्हें पाँच स्थान कहा जाता है। उन पाँच पच्चकखाणों के भिन्न भिन्न आलापक (=पाठ) उन्हें पाँच प्रकार के उच्चार स्थान कहा जाता जैसे कि एकाशन में सर्व प्रथम नमुक्कार सहियं पोरिसि आदि एक अध्यापच्चकखाण व मुटिसहियं आदि एक संकेत पच्चक्खाण उच्चारा जाता है । इन दोनों के मिलने से प्रथम उच्चार स्थान होता है । पश्चात् 'विगइ का प्रत्याख्यान उच्चारा जाता है, इसे दूसरा उच्चार स्थान कहा जाता है । पश्चात् एकाशन के आलापक उच्चारे जाते हैं, इसे तीसरा उच्चार स्थान
१. (यहाँ गिनेजाने वाले पाँच स्थानों को एकाशनादि (आहार वाले) प्रत्याख्यानों के उप विभाग तरीके समझना | और आहार रहित प्रत्याख्यान के लिए (उपवास के लिए) उपर जो पांच स्थान हैं, उन्हे आगे की गाथा द्वारा कहे जायेंगे । (गाथा नं. ८)) है।
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