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________________ गाथार्थ:- द्रष्टि प्रतिलेखना, ६ ऊर्ध्व पप्फोडा, और तीन तीन के अंतर में ९ आस्फोटक, तथा ९ प्रमार्जना (याने तीन तीन आस्फोटक के अंतर में तीन तीन 'प्रमार्जना अथवा तीन तीन प्रमार्जना के अंतर में तीन तीन आस्फोटक मिलकर ९ अखोड़ा ९ प्रमार्जना) इस प्रकार मुइपत्ति की २५ प्रमार्जना समजना । · विशेषार्थ:- गुरु वंदन करने वाले भव्य प्राणी प्रथम खमासमणा देकर गुरु की आज्ञा मांग कर पाँवो के उत्कटिक आसन से बैठकर मौनपूर्वकी मुहपत्ति की २५ प्रतिलेखना दोनो हाथो को दोनो पाँवों के बीच में रख कर करना चाहिये। वो इस प्रकार..... १. दृष्टि प्रतिलेखना:- मुहपत्ति को खोलकर किनारी वाले दोनो छेड़े दोनो हाथ से पकड़कर दृष्टि सन्मुख तिर्की विस्तार कर, दृष्टि सन्मुख का प्रथम पासा दृष्टि से बराबर देखना। यदि जीवजन्तु दिखाई दे तो जयणा पूर्वक उचित स्थानपर रखना। उसके बाद मुहपत्ति का ऊपरी छेड़ा (जीमणेहाथ से पकड़ाहुआ) बाँये (डावे) हाथ पर डालकर दूसरा पासा इस प्रकार बदलना कि बायें हाथ से पकड़ा हुआ कोना जीमणे (दाहिने) हाथ में, और दाहिने हाथ का कोना बाँये हाथ मे आ जावे, जिससे दूसरा पासा(पीछे का भाग) दृष्टि सन्मुख आजावे, उसे दृष्टि से बराबर देखना । इस प्रकार मुहपत्ति के दोनो पासों का (आगे व पीछे के भाग को) दृष्टि से निरीक्षण करना । उसे दृष्टि प्रतिलेखना समजना । 6. उर्ध्व पप्फोड़ा:-(६ पुरिम) दूसरे पासेकी दृष्टि प्रतिलेखना करके उर्ध्व याने तिी विस्तारी हई महपत्ति का प्रथम बाँये हाथ तरफ का भाग तीन बार झटकना अथवा हिलाना। उसे प्रथम ३ परिम कहते है। उसके बाद (दृष्टि प्रतिलेखना में कहे अनुसार) मुहपत्ति को दूसरा पासा बदलकर और दृष्टि से निरीक्षण कर दाहिने हाथ तरफ के भाग को तीन बार झटकना या हिलाना, उसे दूसरे 'पुरिम कहा गया है। इस प्रकार : पुरिम वही । ऊर्ध्व पप्फोड़े अथवा ६ ऊर्ध्व प्रस्फोटक कहे जाते है। 1. अक्खोड़ा :-ऊपर कहे अनुसार पुरिम हो जाने के बाद मुहपत्ति का मध्यभाग बाँये हाथ पर डालकर मध्यभाग का किनारा इस प्रकार रिवंचना की मुहपत्ति दो पड़ के घड़ी वाली बनजाय, और (दो पड़वाली मुहपत्ति). १) इति अवचूरि २) इति प्रव० सारो० और धर्म संग्रह। ३) दोनो पाँवो के बल घुटने ऊंचे कर भूमि से अधर बैठना उसे यहाँपर उत्कटिक आसन कहा गया है। और मुहपत्ति को प्रतिलेखना को समय दोनो हाथों के दोनो पाँवो के बीच रखना। २) उत्कटिक आसन से बैठना उसे कायोर्ध्व और मुहपत्ति का तीळ विस्तार उसे वस्त्रोर्ध्व इस प्रकार दोनो ही प्रकार की उर्खता यहाँ ध्यान मे रखना। ३) मुहपत्ति का तीळ विस्तार कर जो पुरिम-पूर्वक्रिया-प्रथम क्रिया करने मे आती है उसे पुरीम कहा गया है। (108)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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