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________________ (२३०) तहां तौ सरस नीरसका ममत्व नाहीं करै. बहुरि धर्मोपकरण पुस्तक पीछी कमंडलु जिनमूं राग तीब्र बंधै ऐसे न राख, जो गृहस्थजनके काम न पावै. बहुरि बडी वस्तिका रहनेकी जायगासं काम पडै सो ऐसी जायगां न बसै जाते ममत्व उपजै, ऐसे त्यागधर्म कह्या ॥ ४०१ ॥ ___आर्गे पाकिंचन्य धर्म• कहै हैं,तिविहेण जो विवज्जइ चेयणमियरं च सव्वहा संग लोयववहारविरदो णिग्गंथत्वे हवे तस्स ॥ ४०२॥ ___ भाषार्थ-जो मुनि चेतन अचेतन परिमहळू सर्वथा मन बचनकाय कृतकारितअनुमोदनाकरि छोडै, कैसा हूबा संता, कोकके व्यवहारसू विरक्त हवा संता छोडै, तिस मुनिके निग्रंथपणा होय है. भावार्थ-मुनि अन्य परिग्रह तौ छो. ही हैं परन्तु मुनिपणामें योग्य ऐसे चेतन तो शिष्य संघ अर अचेतन पुस्तक पिच्छिका कमंडलु धर्मोपकरण पर आहार बस्तिका देह ये अचेतन तिनिसू भी सर्वथा ममत्व छोडै ऐसा विचार जो मैं तो प्रात्या ही हों अन्य मेरी किछ भी नाही मैं अकिंचन हों, ऐसा निर्ममत्व होय ताके प्राकिंचन्य धर्म होय है ॥ ४०२॥ आगे ब्रह्मचर्य धर्मकू कहै हैं,जो परिहरेदि संगं महिलाणं णेव पस्सदे रूवं । कामकहादिणियत्तो णवहा बंभ हवे तस्स ॥ ४०३ ।।
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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