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________________ ( १९४ ) विषै छह छह घडीका काल सामायिकका है, सो यह विनय सहित निःस्व कहिये परिग्रह रहित तिनिके ईश जो गणधर देव तिनिने का है. भावार्थ-प्रभात तीन घड़ीका तड़के लगाय तीन घडी दिन चढ्यां ताई ऐसें छह घड़ी पूर्वाह्नकाल दोय पहर पहलां तीन घडी लगाय पीछें तीन घडी ऐसें छह घडी मध्यान्हकाल. तीन घडी दिन लगाय तीन घडी राति ताई ऐसे छह घडी अपराहूकाळ. यह सामायिककालका उत्कृष्ट काल है. बहुरि दोय घडीका भीका है ऐसें तीनूं कालकी छह घडीं होय हैं ।। अब आसन तथा लय र मन वचन कायकी शुद्धत. कूं क है हैं . - वेधितो पज्जकं अहवा उडूढेण उब्भओ ठिच्चा । कालपमाणं किच्चा इंदियवावारवज्जिओ होऊ ३५५ जिणवययग्गमणो संपुडकाओ य अंजलिं किच्चा ससरूवे मलीणो बदणअत्थं वि चितित्तो ।। ३५६ ॥ किच्चा देसपमाणं सव्वं सावज्जवज्जिदो होऊ । जो कुब्वदि सामइयं सो मुणिसरिसो हवे सावो || भाषा जो आसन बांधिकरि अथवा ऊभा खडा आसनविष्ठिकर, कलका प्रमाणकरि, इन्द्रियनिके व्यापार विषयनिर्विषै न हीं होने के अर्थ जिनवचन के विषै एकाग्र मनकरि, काकूं संकोचकरि, हस्तकी अंजलि जोडिकरि,
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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