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________________ ( १९३ ) आगे च्यारि शिक्षात्रतका व्याख्यान करें हैं तहां प्रथम ही सामायिक शिक्षाव्रतकूं कहे हैं, - सामाइयस्स करणं खेत्तं कालं च आसणं विलओ । मणवयणकायसुद्धी णायव्वा हुंति सचैव ॥ ३५२ ॥ भाषार्थ - पहले तो सामायिकके करणेविषै क्षेत्र काल आसन बहुरि लय बहुरि मनवचनकायकी शुद्धता ए सात सामग्री जानने योग्य हैं. तहां क्षेत्रकूं कहें हैं ॥ ३५२ ॥ जत्थ ण कलयलसद्दं बहुजणसंघट्टणं ण जत्थत्थि । जत्थ ण दंसादीया एस पसत्थो हवे देसो ॥ ३५३ ॥ भाषार्थ - जहां कलकलाट शब्द नाहीं होय. बहुरि जहां बहुत लोकनिका संघट्ट भावना जावना न होय. बहुरि जहां डांस मच्छर कीडी पीपल्या इत्यादि शरीरकूं बाधा करनहारे जीव न होंय, ऐसा क्षेत्र सामायिक करनेकूं योग्य है. भावार्थ - जहां चित्तकूं कोऊ क्षोभ उपजानेके कारण न होंय वहां सामायिक करना ॥ ३५३ ॥ अब सामायिक के कालकूं कहे हैं, - पुव्व मज्झ अवरह्ने तिहि वि जालियाको । सामाइयस्स कालो सविणयणिस्सेसणिद्दिट्ठो ३५४ भाषार्थ पूर्णा कहिये प्रभातकाल मध्याहन कहिये बीचिका दिन अपराह्न कहिये पाहिला दिन इनि तीनूं काल १३
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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