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________________ की प्राप्ति अति दुर्लभ जाणू. तिसकू पायकरि भव्य जीवनि• महान् आदर करना योग्य है॥३०१॥ छप्पय. वसि निगोदचिर निकसि खेद सहि धरनि तरुनि बहु । पवनवोद जल अगि निगोद लहि जरन मरन सहु ॥ लट गिंडोल उटकम मकोड तन भमर भमणकर । जलविलोलपशु तन सुकोल नभचर सर उरपर ।। फिरि नरकपात अति कष्टसहि, कष्टकष्ट नरतन महत । तहँ पाय रत्नत्रय चिगद जे, ते दुर्लभ अवसर लहत ११ इति बोधिदुर्लमानुप्रेक्षा समाप्ता ॥११॥ अथ धम्मानुप्रेक्षा प्रारभ्यते. आगे धर्मानुप्रेक्षाका निरूपण करै हैं तहां धर्मका मूल सर्वज्ञ देव है ताकू भगठ करै हैं,जो जाणदि पच्चक्खं तियालगुणपज्जएहि संजुत्वं । लोयालोयं सयलं सो सव्वण्हू हवे देओ ॥ ३०२॥ भाषार्थ-जो समस्त लोक अर अलोक तीनकालगोचर समस्त गुणपर्यायनिकरि संयुक्त प्रत्यक्ष जाणे सो सर्वज्ञ देव है. भावार्थ-या लोकविष जीव द्रव्य अनन्तानन्त हैं. तिनिते अनन्तानन्त गुणे पुद्गल द्रव्य हैं. एक एक प्राकाश, धर्म,
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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