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________________ (१२०) उत्तरपरिमाणजुदंत चिय कज्ज हवेणियमा ॥ २३० ।। , भाषार्थ-पूर्वपरिणामकरियुक्त द्रव्य है सो तौ कारणभावकरि वर्त है बहुरि सो ही द्रव्य उत्तरपरिणामकरि युक्त होय तब कार्य होय है. यह नियमते जाणूं. भावार्थ- जैसे मांटीका पिंड तौ कारण है अर ताका घर बगमा सो कार्य है. तैसे पहले पर्यायका स्वरूप कहि अब जीव पिछले पर्याय सहित मया तब सो ही कार्यरूप भया. ऐसँ नियम है ऐसे वस्तुका स्वरूप कहिये है ॥ २३० ॥ ___ अब जीव द्रव्यकै भी तैसे ही अनादिनिधन कार्यकारणभाव साथै हैंजीवो अणाइणिहणो परिणयमाणो हुणवणवं भावं । सामग्गीसु पवट्ठदि कज्जाणि समासदे पच्छा ॥२३१॥ भाषार्थ-जीव द्रव्य है सो अनादिनिधन है सो नवे नवे पर्यायनिरूप प्रगट परिणमै है. सो पहले द्रव्य क्षेत्र काल भावकी सामग्रीविषै वर्ने है. पीछे कार्यनिकू पर्यायनिकू प्राप्त होयहै। भावार्थ-जैसे कोई जीव पहले शुभ परिणामरूप प्रवः पीछे स्वर्ग पावै तथा पहलै अशुभ परिणामरूप प्रवत पीछे नरक आदि पर्याय पावे ऐसें जानना ॥ २३१ ॥ आगे जीवद्रव्य अपने द्रव्यक्षेत्रकालभावविष तिष्ठया ही नवे पर्यायरूप कार्यकू कर ऐसे कहै हैंससरूवत्थो जीवो कज्जं साहेदि वट्टमाणं पि।
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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