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________________ (११९) परिणामेण विहीणं णिच्चं दव्वं विणस्सदे णेयं । णो उप्पज्जदि य सया एवं कज्जं कहं कुणइ ॥२२॥ __ भाषार्थ-परिणामकरिहीण जो नित्य द्रव्य, सो विनसे नहीं, तब कार्य कैसे करै १ अर जो उपजै विनशै तो नित्य. पणा नाहीं ठहरै. ऐसे कार्य न करै सो वस्तु नाहीं है २२७ । आगें पुनः क्षणस्थायीकै कार्यका अभाव दिखावे हैंपज्जयमित्तं तच्चं विणस्सरं खणे खणे वि अण्णणं । अण्णइदव्वविहीणंणय कज्जं किं पिसाहेदि॥२२८॥ भाषार्थ- जो क्षणस्थायी पर्यायमात्र तत्त्व क्षणक्षणमें अन्य अन्य होय ऐसा विनश्वर मानिये तौ अन्वयीद्रव्यकरि रहित हूवा संता कार्य किछू भी नाही साधै है. क्षणस्थायी विनश्वरकै काहेका कार्य ॥ २२८॥ ___ आगें अनेकान्तवस्तुकै कार्यकारणभाव वणे है सो दि. खावै हैं,णवणवकज्जविसेसा तीसु वि कालेसुहोति वत्थूणं । एक्केक्कम्मि य समये पुव्वुत्तरभावमासिज्ज॥२२९॥ भाषार्थ-जीबादिक वस्तुनिक तीनही कालविर्षे एक एक समयविष पूर्वउत्तरपरिणामका पाश्रयकरि नवे नवे का. यविशेष होय हैं नवे नवे पर्याय उपजै हैं ॥ २२९ ॥ .. आरौं पूर्वोत्चरभावकै कारणकार्यभावकू दृढ करै हैंपुव्वपरिणामजुचं कारणभावेण वट्टदे दव्वं ।
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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