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________________ (११५) आगे द्रव्यनिके स्वभावभूत नाना शक्ति हैं ताकौं कौन निषेधि सके है ऐसें कहै हैं,कालाइलद्धिजुत्ता णाणासचीहिं संजुदा अत्था । परिणममाणा हि सयं ण सक्कदे को वि वारेहूँ ॥ । भाषार्थ-सर्व ही पदार्थ काल आदि लब्धिकरि सहित भये नाना शक्तिसंयुक्त हैं तैसे ही स्वयं परिणमै हैं तिनकू परिणामतै कोई निवारनेरू समर्थ नाहीं। भावार्थ-सर्व द्रव्य अपने अपने परिणामरूप द्रव्य क्षेत्र काल सामग्रीकू पाय आप ही भावरूप परिणमै हैं । तिनकू कोई निवारि न सकै है ॥ २१९ ॥ ___ आगे व्यवहारकालका निरूपण करै हैं,- । जीवाण पुग्गलाणं ते सुहमा वादरा य पजाया। तीदाणागदभूदा सो ववहारो हवे कालो॥२२०॥ . भाषार्थ-जीव द्रव्य अर पुद्गल द्रव्यके सूक्ष्म तथा वादर पर्याय हैं ते अतीत भये अनागत-आगामी होंयगे, भूत कहिये वर्तमान हैं सो ऐसा व्यवहार काल होय है. भावार्थजो जीव पुद्गलके स्थूल सूक्ष्म पर्याय हैं ते अतीतभये तिनिकू अतीत नाम कह्या. बहुरि जो आगामी होंयगे तिनिक अनागत नाम कह्या. बहुरि जो वर्ते हैं तिनिकू वर्तमान नाम कया. इनिङ जेतीवार लगै है तिसहीकू व्यवहार काल नाम करि कहिये हैं. सो जघन्य तौ पर्यायकी स्थिति एक समय
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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