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________________ ( ११४ ) भाषार्थ - जो सर्व द्रव्यनिकै परिणाम करै है सो काल द्रव्य है । सो एक एक प्रकाशके प्रदेशविषै एक एक कालाणुद्रव्य व है । भावार्थ - सर्व द्रव्यनिके समय समय पर्याय उपजै हैं अरविनसे हैं सो ऐसे परिणमनकूं निमित्त कालद्रव्य है । सो लोकाकाशके एक एक प्रदेशविषै एक २ काला तिष्ठै है । सो यह निश्चय काल है | २१६ ॥ आगे कहै हैं कि परिणमनेकी शक्ति स्वभावभूत सर्व द्रव्यनिमें है, अन्य द्रव्य निमित्तमात्र हैंणियणियपरिणामाणं णियणियदव्वं पि कारणं होदि । अण्णं बाहिरदव्वं णिमित्तमत्तं वियाह ॥ २१७ || 1 भाषार्थ - सर्व द्रव्य अपने अपने परिणमनिके उपादान कारण हैं । अन्य वाह्य द्रव्य हैं सो अन्यके निमितमात्र जाणूं । भावार्थ- जैसे घट यादिकूं माटी उपादान कारण है अर चाक दंडादि निमित्त कारण हैं । तैसें सर्व द्रव्य अपने पर्यायनिकं उपादान कारण हैं । कालद्रव्य निमित्त कार है ॥ कहै हैं कि सर्वही द्रव्यनिकै परस्पर उपकार है सो सहकारीकारणभावकरि हैसंव्वाणं दव्वाणं जो उवयारो हवेइ अण्णोणं । सो चिय कारणभावो हवादे हु सहयारिभावेण || भाषार्थ - सर्व ही द्रव्यनिकै जो परस्पर उपकार है सो सहकारीभावकार कारणभाव हो है यह प्रगट है ।। २९८ ॥
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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