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________________ मणवयणकायदव्वा आसत्ता जस्स इन्दिया विसया। आयदणं जिणमग्गे णिद्दिट्ट संजय रूवं ।। ११३ ॥ मन, वचन, काय रूपी द्रव्य और इन्द्रियों के सभी विषय जिनके अधीन होते हैं । जिनमार्ग के संयमी मुनि आयतन कहलाते हैं। मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्ता। पंचमहव्वयधारा आयदणं महरिसी भणियं ॥ ११४॥ जो राग, द्वेष, मद, मोह, क्रोध, लोभ आदि को अपने वश में रखते हैं और पाँच महाव्रतों को धारण करते हैं वे महामुनि आयतन कहलाते हैं। सिद्धं जस्स सदत्थं विसुद्धझाणस्स णाणजुत्तस्स। सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवरवसहस्स मुणिदत्थं ॥ ११५॥ जो मुनि के वास्तविक अर्थ में मुनित्व को उपलबध कर चुके हैं, विशुद्ध ध्यान और केवलज्ञान से सम्पन्न हैं वे ही श्रेष्ठ मुनि सिद्धायतन हैं। बुद्धं जं बोहंतो अप्पाणं चेदयाई अण्णं च। पंचमहव्वयसुद्धं णाणमयं जाण चेदिहरं ॥११६॥ जो आत्मस्वरूप को जानता हो, अन्य सभी जीवों को भी चेतना स्वरूप समझता हो, पाँच महाव्रतों से शुद्ध हो और ज्ञानमय हो वही मुनि चैत्यगृह है। चेइय बंधं मोक्खं दुक्खं च अप्पयंतस्स। चेइहरं जिणमग्गे छक्कायहियंकरं भणिय ॥ ११७॥ जिसकी आत्मा में बन्धमोक्ष, सुख दुःख होता हो, जो जिनशासन के अनुसार षट्काय जीवों का हित करने वाला हो वह (मुनि) चैत्यगृह है। 37
SR No.022293
Book TitleAtthpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi
PublisherHindi Granthratna Karyalay
Publication Year2008
Total Pages146
LanguagePrakrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size9 MB
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