SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बोहिपाहुड (बोधप्राभृतम्) बहुसत्थअत्थजाणे संजमसम्मत्तसुद्धतवयरणे । वंदित्ता आयरिए कसायमलवज्जिदे सुद्धे ॥ १०६ ॥ सयलजणबोहणत्थं जिणमग्गे जिणवरेहिं जह भणियं । वोच्छामि समासेण छक्कायसुहंकरं सुणह ॥ ११० ॥ जिनेन्द्र भगवान् ने जिनमत के विषय में जो कुछ कहा है उसे मैं कुन्दकुन्द अनेकानेक शास्त्रों के अर्थज्ञाता, संयम एवं सम्यक्त्व के धनी, परम तपस्वी और कषायों से मुक्त निर्मल आचार्यों की वन्दना करके संक्षेप में कहता हूँ । हे पाठको षट्काय जीवों को सुख देने वाले इस विवेचन को कृपया पढ़ें । 36 आयदणं चेदिहरं जिणपडिमा दंसणं च जिणबिंबं । भणियं सुवीयरायं णिमुद्दा णाणमादत्थं ॥ १११ ॥ अरहंतेण सुदिट्ठे जं देवं तित्थमिह य अरहंतं । पावज्जगुणविसुद्धा इय णायव्वा जहाकमसो ॥ ११२ ॥ इस बोध पाहुड में वीतराग भगवान् द्वारा किए गए प्रतिपादन के अनुसार निम्नांकित विषयों का क्रमशः वर्णन है - १. आयतन, २. चैत्यगृह, ३. जिन प्रतिमा, ४. दर्शन, ५. वीतराग जिनबिम्ब, ६. राग रहित जिनमुद्रा और ७. आत्मार्थ ज्ञान । इनके अलावा अरिहन्तों द्वारा प्रतिपादित ८ देव, ६ तीर्थ, १० अरिहन्त और ११ गुणों से विशुद्ध हुई प्रव्रज्या का भी वर्णन इसमें है ।
SR No.022293
Book TitleAtthpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi
PublisherHindi Granthratna Karyalay
Publication Year2008
Total Pages146
LanguagePrakrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy