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________________ पूज्याहतो यत्र गुणो मनोज्ञो, वाक्कायचित्तैः खलु वर्ण्यते यः । सैवाहतो वाञ्छितदास्ति भक्ति, मोक्षाय कार्या सततं सुभव्यैः ॥२८६॥ अत्यंत पूज्य भगवान जिनेन्द्रदेव यथास्थित समस्त लोकको यथार्थ रीतिसे सदाकाल देखते और जानते रहते हैं। तथा वे भगवान तीनों लोकोंका हित करनेवाले हैं, कर्मरूपी शत्रुओंको जीतनेवाल हैं, स्वर्गमोक्षको देने वाले हैं और संसाररूपी रोगको नष्ट करनेवाले हैं। ऐसे भगवान जिनेंद्र देवके मनोहर गुणोंको मन वचन कायसे वर्णन करना इच्छानुसार फल देनेवाली भगवान अरहंत देवकी भक्ति कहलाती है। यह अरहंतभक्ति श्रेष्ठ भव्य जीवोंको मोक्ष प्रात करने के लिए सदाकाल करते रहना चाहिए ॥ २८५-२८६ ॥ भीम भवाब्धौ पततां जनानां, दीक्षादिदानः परिपालनैर्वा । बोधामृतैः स्वात्मविबोधनैर्वा, संसारहर्तुः सुखशांतिदातुः ॥२८७॥
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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