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________________ [१०४] है । जिसमकार मेघकी वर्षासे समस्त संसार हर्षित होता है उसीप्रकार उस सुपुत्रसे समस्त संसार हर्षित होता है । तथा जो पुरुष इन ऊपर लिखे कार्योंसे विरोध करता रहता है वह कुटिल और पापी कुपुत्र कहलाता है। ॥ १८८ ॥ १८९ ॥ चतुगतेभयं कस्माद्विद्यते वद भो गुरो ! प्रश्न:-हे गुरो ! अब यह बतलाइये कि चारों गतियों को किससे भय लगता है ? अनीतियुक्तस्य भयं सुनीतेः, कुज्ञानजालस्य भयं सुबोधात् । जीवस्य मिथ्यात्वयुतस्य भीतिः, सम्यक्त्वसूर्याच्च खलस्य साधोः ।१९० कुवृत्तमार्गस्य भयं भवेद्वा, स्वाचारमार्गात्कुसृतेः सुमार्गात् । स्वात्मानुभूतेश्च चतुर्गतीनां, स्वस्थानवासाद्विपदस्य भीतिः ॥१९१॥ उत्तरः-जो पुरुष अनीति करता रहता है उसको श्रेष्ठ नीतिसे सदा भय लगता रहता है, इसीप्रकार मिथ्या ज्ञानके समूहको सम्यग्ज्ञान से भय लगा रहता है, मिथ्या
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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