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________________ [ १०३ ] कः सुपुत्रः कुपुत्रो वा भो गुरो ! वद साम्प्रतम् ? प्रश्न: - हे गुरो ! अब यह बतलाइये कि सुपुत्र कौन हैं और कुपुत्र कौन है ? पूजादिदाने स्वपरोपकारे, धर्मार्जने यस्य सदा प्रयत्नः । स्ववंशवृद्ध यतते स्वयं यो, निजात्मसिध्यै जिनधर्मवृध्यै ॥ १८८ ॥ स एव लोके सुजनः सुपुत्रो, विश्वस्य हर्षाय यथैव मेघः । पूर्वोक्तकार्यस्य च यो विरोधी, स एव पापी कुटिलः कुपुत्रः ॥ १८९ ॥ उत्तर:- जो पुरुष देवपूजा करने और पात्रदान देनेके लिये सदा प्रयत्न करता रहता है, तथा अपने आत्माका कल्याण और अन्य जीवोंका कल्याण करनेका प्रयत्न करता रहता है और जो धर्मके उपार्जन करनेका सदा प्रयत्न करता रहता है, इसीप्रकार जो अपने वंशकी वृद्धि करने के लिये, अपने आत्माको शुद्ध करनेके लिये और जिनधर्मकी वृद्धि करनेके लिये सदा प्रयत्न करता रहता है वही सज्जन पुरुष इस संसार में सुपुत्र कहलाता
SR No.022288
Book TitleBodhamrutsar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar
PublisherAmthalal Sakalchandji Pethapur
Publication Year1937
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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