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________________ [ घ ३. महावीर जिनस्तोत्र-आनी रचना पू० उपाध्यायजीए 'शिवपुरी' मां करी छ। आ कृति मूल प्राकृतमा छे, एना उपर संस्कृतमा एक अवचूरि छ । आमां एकंदर २६ पद्यो छे, २८ पद्यो अनुप्रासादि शब्दालंकारालंकृत त्रोटक छंदमां अने छेल्लू पद्य वसन्ततिलकामां छे। आमां वर्तमान तीर्थाधिपति श्रीमन्महावीर भगवंतनी स्तुति करवामां आवी छ । ____संशोधनमा महावीर विज्ञप्ति द्वात्रिंशिकानी हस्तलिखित प्रति छाणी ज्ञानमंदिरनी चंदुलाल भाई द्वारा प्राप्त थइ छ । .. षोडशश्लोकीनी हस्तलिखित एक प्रति सुरत जैनानंद पुस्तकालयनी पानाचंदभाई मद्रासी द्वारा अने बीजी एक प्रति वडोदरा आत्मानंदज्ञानमंदिरनी सौभाग्यचंदभाई द्वारा प्राप्त थइ छ । महावीर स्तोत्रनी प्रति कपडवंज अभयदेवसूरि ज्ञानमंदिरनी मास्तर हरगोविंददास द्वारा प्राप्त थइ छ। एना आधारे सावधानी थी संशोधन कयु छे, छतां कोइ भूल रही जणाय तो ते विद्वानोए सुधारी वांचवं ए अभ्यर्थना । कारतक सुद५ लि० संशोधक कलकत्ता
SR No.022253
Book TitleDharmsagar Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherMithabhai Kalyanchand Pedhi
Publication Year1962
Total Pages168
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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