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________________ परिचय णमोत्थु णं समणस्स भगवो महावीरस्स जैन इतिहासनु विहंगावलोकन करतां जणाशे के भगवान् श्री ऋषभदेवपरमात्माथी आजदिनपर्यंत जिनेश्वरपरमात्माना शासन उपर ऐक या बीजी रीते बाह्य तेमज आंतरिक आक्रमणो थया छे, अने आ आक्रमण आजे पण शांति, परमतसहिष्णुता, सर्वधर्म-समभाव, सर्वधर्मसमन्वय, बिनसांप्रदायिकता विगेरे अनेक सुदरशब्दोना बहाना नीचे चालुज छे. (अने आ प्रत्ये सेवातु दुर्लक्ष भविष्यमां शासन माटे हानिकारक बनशे.) __ सत्य हमेशां एकज होय छे अनेक नहि. परंतु सत्यनो स्वांग सजीने अनेक असत्यो सत्यने पडकारवा हमेशां तैयार होय छे. आथी आंतरिक शत्रुओ विषेनी साची समज आपवा अने प्रभु शासनना सन्मार्गने वधु प्रकाशित करवा आपणा महान् उपकारी पूर्वमहापुरुषोए अनेक उपायो कर्या छे, तेमांनो एक उपाय ' ग्रंथ-रचना ' छे. आवो एक अपूर्व ग्रंथ 'सिरि आवस्मय - सत्तरी' छे, आ ग्रथनी अंदर मुख्यत्वे पूर्णिमामतना स्थापक आ० प्रभाचंद्रनी उत्सूत्रप्ररूपणानु खडन करवा पक्खी विगेरे पर्वतिथिनी आराधनानु स्पष्ट रीते शास्त्रीय गते निरूपण करेलु होवाथी तेनी साथे आ० प्रभाचंद्र अने तेमने स्थापेल नविन उत्सूत्रप्ररूपणात्मक पूर्णिमागच्छ संकलाएल होवाथी तेओ विषे टुकमा उल्लेख करी ग्रंथ, ग्रथकार अने वृत्तिकार विषे विचारीशु. स्थापकः- पूर्णिमागच्छना स्थापक आ० प्रभाचंद्र' आ० सर्वदेवमरिना आठ पट्टधरोमांना मोटा पट्टधर आ० जयसिंहमूरिनी पाटे थया. तेओ वडगच्छमां वडिल हता अने तेमने 'वादीभसूरि' नु बिरुद हतु. आ० मुनिचंद्रसूरि तेमनाथी नाना हता, पण संघमां तेमनी लोकप्रियता वधु हती. ते आ० प्रभाचंद्र माटे ईर्ष्यानु कारण बनी अने तेथी आ० प्रभाचंद्र सवत् ११५९ मां आ 'पूर्णिमागच्छ' नामना मतनी स्थापना करी. आ नवीनमतनी प्ररूपणाथी तेओ वडिल विद्वान् वादीन्द्र होवा छतां १ टिप्पण- गुरुतत्त्वप्रदीपकार प्रस्तुतआचार्य, मुनिचन्द्रसूरि, मानदेवसूरि अने शांतिसूरि आ चारे ने एक गुरु ना शिष्य तरीके जणावे छे. :
SR No.022251
Book TitleAavashyak Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri, Maheshwarcharya, Labhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1972
Total Pages68
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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