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________________ "ठिइबंधो” (स्थितिबन्ध ) नामक बे महाकाय ग्रन्थोनुं प्रकाशन विशिष्ट समारोह पूर्वक राजनगरना आंगणे गत वर्षनी आखरमां थयेल छे ते सौ कोई जाणे छे, आगळना ग्रन्थोनुं कार्य पण अविरत पणे चालु छे, प्रकाशितग्रन्थ अने प्रकाशमां आवनारा ग्रन्थो तथा बीजा पण ग्रन्थोमां उपयोगी एवं द्रव्यप्रमाणप्रकरण स्वोपज्ञ लघु विवेचन साथे 'ठिइबंधो' ग्रन्थना परिशिष्ट तरीके प्रकाशित थई गयुं छे. ते ज रीते अन्य ग्रन्थमां अने स्वाध्याय - रुचि महानुभावोने उपयोगी जणावाथी विपुल पदार्थोना संग्रहरूप प्रकाशित थतुं आ स्वोपज्ञवृत्ति सहित - क्षेत्रस्पर्शना- प्रकरण छे. आ क्षेत्रस्पर्शना - प्रकरण मां पदार्थज्ञानना सूक्ष्म अने सम्यग् - बोधमां हेतु उपर्युक्त अनुयोग द्वारोमांनां क्षेत्र अने स्पर्शना ए बे द्वार लई जीवपदार्थनो विचार करवामां आव्यो छे ते पण 'गइइंदिए य काये' इत्यादि गाथा प्रसिद्ध १४ मूलमार्गाणाभेदानुसारी १७४ भेदप्रभेदमां करायो छे. क्षेत्रनो विचार 'उपपात स्वस्थान अने समुद्घात एम त्रण भेदथी अने स्पर्शनानो विचार गमनागमनरूप चोथा भेदथी पण करवामां आव्यो छे. आ त्रण प्रकारनं क्षेत्र अने चार प्रकारनी स्पर्शना कषाययुक्त अने कषाय रहित जीनोनी अपेक्षाए जुदी जुदी बताववामां आवी छे. आ बधा पदार्थोंने जीवविचार आदि प्रकरणोनी जेम प्रथम गाथाओमां गुंथी लई प्रकरणकर्ताए पोते तेना विवेचनरुप टीकानी रचना करी छे. आ प्रकरणनुं स्वोपज्ञवृत्तिसहित संयोजन पू. आचार्यदेव
SR No.022249
Book TitleDravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagacchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2010
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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