SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अस्तित्व कई कई रीते सिद्ध छे ? हवे जो तेनुं अस्तित्व सिद्ध छे तो ते जीवो सामान्यथी अने जातिभेद केटली संख्यामां होय ?, ते ते जातिभेदरुपे केटलो काल टकी शके ?, अन्य जातिभेदने प्राप्त थयेला पुनः ते जातिभेदने केटला काळमां प्राप्त करे ?, कोई एक समये समस्त जगतमां प्राप्त थाय के जगतना अमुक भागमां प्राप्त थाय ? इत्यादि विचारणाथी जीव पदार्थनो सूक्ष्म अने दृढं बोध थाय छे. ___आ जातनी विचारणा करवा माटे शास्त्रोमां अनेक प्रकारो आवे छे, जेने अनुयोगद्वार कहेवाय छे, जेमके। "संतपयपरुवण, या 'दव्वपमाणं च खित, "फुसणा य । "कालो अ, अंतरं भाग 'भावे 'अप्पाबहुं चेव ॥१॥ आमां 'सत्पदप्ररुपणा नामना प्रथम द्वारथी जीवादि ते ते पदार्थना अस्तित्वनो विचार, "द्रव्यप्रमाण द्वारथी तेनी संख्यानो विचार,३६ क्षेत्र' द्वारथी कोई एक समये जीवादि ते ते पदार्थनी हयातीनां स्थाननो विचार, 'स्पर्शना' द्वारथी समस्त अतीतकालनी अपेक्षाए जीवादिनी हयातीनां स्थान इत्यादि विचारणा कराय छे. बीजां पण पदार्थोनां चितंन-मनन माटे उपयोगी द्वारो छे, कयुं छे के "निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः' इत्यादि वर्तमानमां सिद्धान्तमहोदधि कर्मशास्त्र-निष्णात पू. आचार्यदेव श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराज साहेबनी निश्रामां तेओश्रीनो शिष्यप्रशिष्यादि परिवार कर्मसाहित्यना विविध अंगो उपर विपुल प्रमाणमां साहित्य सर्जन करी रहेल छे, कर्मसाहित्यना अनेक ग्रन्थोनुं अध्ययन अने अन्वेषण करी एक-एक विषय पर मौलिक ग्रन्थो तैयार करी रहेल छे, तेना फलस्वरूप "खवगसेढी" (क्षपकश्रेणी) अने
SR No.022249
Book TitleDravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagacchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2010
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy