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________________ अथ दिनचर्या नामाख्यं द्वितीयोल्लासः : 79 धनवान बनने की इच्छा करता है, वह पुरुष जीने की इच्छा से जैसे विष भक्षण ही करता है, ऐसा जानना चाहिए। गोदेवकरणारक्ष तलावर्तकपट्टकाः । ग्राम्योत्तरश्च न प्रायः सुखाय प्रभवन्त्यमी ॥ 73 गाय, देव और खेत, इनके रखवाले, तलारक्ष, पटेल और ग्रामीण इतने लोग ( यदि सङ्कट में आ जाए तो ) प्रायः सुख नहीं देते हैं । अभिगम्यो नृभिर्योग क्षेमसिद्ध्यर्थमात्मनः । राजादिनायकः कश्चिदिन्दुनेवं दिवाकरः ॥ 74 ॥ जिस प्रकार से चन्द्रमा तेजस्विता प्राप्त करने के लिए सूर्य के समीप जाता है, वैसे ही बुद्धिमान पुरुष को अपने कल्याण की कामना से किसी राजा, प्रमुख नायक के पास जाना चाहिए। निन्दन्तु मानिनः सेवां राजादीनां सुखैषिणः । स्वजनास्वजनोद्धार संहारौ न तया विना ॥ 75 ॥ सुख की अभिलाषा करने वाले अहङ्कारी पुरुष राजा, प्रमुख की सेवाचाकरी की भले ही निन्दा करें किन्तु उसके अभाव में स्वजनोद्धार और शत्रु का संहार नहीं होता है। स्वामीलक्षणं ― अकर्णदुर्बलः शूरः कृतज्ञः सात्विको गुणी । वदान्यो गुणरागी च प्रभुः पुण्यैरवाप्यते ॥ 76 ॥ जो कान का कच्चा नहीं होता, किए हुए उपकार को मानने वाला, सत्वशाली, गुणी, उदार और गुणानुरागी ऐसा स्वामी तो पुण्यकर्म से ही प्राप्त हो सकता है। सुतन्त्रः सुपवित्रात्मा सेवकागमनस्पृही । औचित्यवित्क्षमी दक्षः सलज्जो दुर्लभः प्रभुः ॥ 77 ॥ शास्त्रविधि का सम्यक् ज्ञाता, पवित्रात्मा, सेवक के आगमन की इच्छा करने वाला, उचित कर्तव्य का ज्ञाता, क्षमाशील, दक्ष और लज्जाशील- ऐसा स्वामी मिलना दुर्लभ है। विद्वानपि परित्याज्यो नेता मूर्खजनावृतः । मूर्खोऽपि सेव्य एवासौ बहुश्रुतपरिच्छदः ॥ 78 ॥ स्वामी भले ही कैसा ही विद्वान् हो तब भी यदि वह मूर्ख लोगों का परिवार रखता हो, तो उसको त्याग देना ही श्रेयस्कर है। जो स्वामी स्वयं मूढ़ होते हुए भी अपने पास विद्वान् व अनुभवी लोगों को आश्रय दिए हो, वह सेवा के योग्य होता है ।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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