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________________ 66 : विवेकविलास हो तो ऐसा योग देखकर रोग विमुक्ति के लिए स्नान करना सिद्धिप्रद होता है। रते वान्ते चिताधूमस्पर्शे दुःस्वप्नदर्शने। क्षौरकर्मण्यपि स्नायादलितैः शुद्धवारिभिः॥14॥ इति स्नानचर्यायां। सामान्यतया स्त्रीसङ्ग, वमन, (श्मशान में) चिता से धूआँ उठता देखने में आए, बुरा स्वप्न हो जाए और क्षौर करवाया हो तो तो शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। अथ क्षौर कर्मविचारः चतुर्थी नवमी षष्ठी चर्तुदश्यष्टमी तथा। अमावास्या च दैवज्ञैः क्षौरकर्मणि नेष्यते॥15॥ दैवज्ञों का मत है कि चतुर्थी, नवमी, षष्ठी, चतुर्दशी, अष्टमी और अमावस्याइन छह तिथियों में क्षौरकर्म कराना उचित नहीं है। दिवाकीर्तिप्रयोगे तु वाराः प्रोक्ता मानीषिभिः। सौम्येज्यशुकसोमानां क्षेमारोग्यसुखप्रदाः॥16॥ क्षौरकर्म के लिए बुधवार, गुरु, शुक्र और सोमवार- ये चार वार क्षेम, आरोग्य और सुख देने वाले होते हैं, ऐसा पण्डित लोगों का मत है। क्षौरं प्रोक्तं विपश्चिद्भिमृगे पुष्ये चरेषु च। ज्येष्ठाश्विनीकरद्वन्द्वरेवतीषु च शोभनम्॥17॥ नक्षत्रों में मृगशिरा, पुष्य, चर संज्ञक नक्षत्र (स्वाती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा), ज्येष्ठा, अश्विनी, हस्त, चित्रा और रेवती- इन नक्षत्रों में क्षौरकर्म प्रशस्त है, ऐसा विद्वानों का कहना है। क्षौरे राजाज्ञया जाते नक्षत्रं नावलोक्यते। कैश्चित्तीर्थ च शोके च क्षौरमुक्तं शुभार्थिभिः॥18॥ यह मत श्रीपति के मत से तुलनीय है- इन्दोरे भार्गवेषु ध्रुवेषु सार्पादित्यस्वातियुक्तेषु भेषु । पित्र्ये चान्त्ये चैव कुर्यात्कदाचिन्नैव स्नानं रोगर्मुक्तस्य जन्तोः ॥ लग्ने चरे सूर्यकुजेज्यवारे रिक्ते तिथौ चन्द्रबले च हीने। त्रिकोणकेन्द्रोपगतैश्च पापैः स्नानं हितं रोगविमुक्तकानाम् ।। (ज्योतिषरत्नमाला 4, 51-52) इसी क्रम में विट्ठलदीक्षित का मत है कि स्नान तब करें जबकि चन्द्रमा हीन स्थानस्थ (जन्म राशि से 4, 8, 12वाँ) हो, सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर, चरलग्न. (1, 3, 7, 10) में और पापग्रह लग्नस्थ हो अर्थात् क्षीणचन्द्र, सूर्य, मङ्गल, शनि, राहु और केतु लग्न से 11, 1, 4, 7, 10, 9 व 5वें स्थान पर हो तथा रिक्ता तिथि (4,9 अथवा 14) हो। इनके अतिरिक्त ध्रुवसंज्ञक नक्षत्र (उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद व रोहिणी), रेवती, आश्लेषा, पुनर्वसु, स्वाती और मघा नक्षत्रों को छोड़कर अन्य कोई नक्षत्र (अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और पूर्वाभाद्रपद) लिया जाना चाहिए-चन्द्रे विरुद्ध विकवीन्दुवारे चरोदये दुर्युजि रिक्ततिथ्याम्। ध्रुवा-न्त्य-सार्पा-दिति-वायुपित्र्यहीनोडुभिः स्नातु नरो रुजान्ते॥ (मुहूर्तकल्पद्रुम 8, 33)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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