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________________ अथ दिनचर्या नामाख्यं द्वितीयोल्लासः : 65 स्नानं कृत्वा जलैः शीतैर्भोक्तुमुष्णं न युज्यते। जलैरुष्णैस्तथा शीतं तैलाभ्यङ्गश्च सर्वदा॥9॥ शीतल जल से स्नान करने के तत्काल बाद गरम भोजन नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार गर्म जल से स्नान के तुरन्त बाद ठण्डा भोजन नहीं करना चाहिए। चाहे कैसे ही जल से स्नान किया हो किन्तु उसके बाद तैलाभ्यङ्ग तो किसी भी समय नहीं करना चाहिए। स्नानोपरान्तविकृतच्छायाफलादीनां स्नातस्य विकृता छाया दन्तघर्षः परस्परम्। देहे च शवगन्धश्चेन्मृत्युस्तद्दिवसत्रये॥10॥ स्नानकर्ता की परछाईं उसे यदि छिन्न-भिन्न अथवा उल्टी दिखाई दे, दाँत परस्पर घिसे अथवा देह से मुर्दे जैसी दुर्गन्ध आती लगे तो तीन दिन में मृत्यु जाननी चाहिए। स्त्रातमात्रस्य चेच्छाषो वक्षस्यमिद्वयेऽपि च। षष्ठे दिने तदा ज्ञेयं पञ्चत्वं नात्र संशयः॥11॥ यदि स्नान करने के तत्काल बाद वक्षस्थल और दोनों पाँव सूख जाए तो छठे दिन मरण की आशंका जाननी चाहिए, इसमें संशय नहीं है। रोगमुक्तिनानं न शुक्रसोमयोः कार्यं स्नानं रोगविमुक्तये। पौष्णाश्रूषाध्रुवस्वाति पुर्नवसुमघासु च ॥12॥ शुक्रवार या सोमवार और रेवती, आश्लेषा, गोहिणी, तीन उत्तरों, स्वाति, पुनर्वसु और मघा- इतने नक्षत्रों में रोग विमुक्ति के हेतु से स्नान करना चाहिए। रिक्ता तिथिः कुजार्को वा क्षीणेन्दुर्लग्नमस्थिरम्। द्वित्रयष्टैकादशाः क्रूरा नैरुज्यस्नानसिद्धिदाः ॥ 13 ॥ इसी प्रकार रिक्ता तिथि (4, 9 और 14), मङ्गलवार अथवा रविवार, क्षीण चन्द्रमा, अस्थिर (चर) लग्न और दूसरे, तीसरे, आठवें या ग्यारहवें स्थान पर क्रूरग्रह * महाभारत में कहा है कि स्नान के बाद अपने अङ्गों में तेल की मालिश नहीं करनी चाहिए- स्नात्वा च नावमृज्येत गात्राणि सुविचक्षणः ।। न चानुलिम्पेदनात्वा स्नात्वा वासो न निर्धनेत्। (अनुशासनपर्व 104, 51-52)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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