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________________ अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लासः : 59 समाना शुकनासस्य घण्टिका गूढमण्डपे। एन्तमानैव रङ्गाख्ये मण्डपे च बलाणके ॥ 180॥ देवालय में घण्टा का प्रमाण सामान्यतः भूतल में, गूढ़ अथवा रङ्गमण्डप में शुकनास के समान ही जानना चाहिए। जीर्णोद्धारेऽवसरे द्वारं न चालयेत् - गृहे देवगृहे वाऽपि जीणे चोद्धर्तुमीप्सिते। . प्राग्वद्वारं प्रमाणं च वास्तुत्पादोऽन्यथाकृते॥ 181॥ जब किसी भवन या देवालय का जीर्णोद्धार करना हो तो उसका द्वार और मान प्रमाण यथावत रखा हो तो नवीन वास्तुविधान की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु यदि कोई बदलाव हुआ तो नया वास्तु करवाना चाहिए। अन्यदप्याह - स्तम्भपट्टादिवेधवस्तु यः प्राक्तो गृहशालके। प्रासादेष्वपि स ज्ञेयः सम्प्रदायाच्च शिल्पिनाम्॥ 182॥ स्तम्भ और पट्ट" आदि का प्रमाण और वेध विषयक विचार पूर्व के वास्तुशास्त्रों में कहा गया है, शिल्पियों के सम्प्रदाय प्रमाण या शैली के अनुसार वे विचार ग्रहण करने चाहिए। अथ प्रतिमार्थं काष्ठपाषाणस्य परीक्षणं निर्मलेनारनालेन, पिष्टया श्रीफलत्वचा। विलिप्तेऽश्मनि काष्ठे वा प्रकटं मण्डलं भवेत्॥ 183॥ (जब प्रतिमादि का निर्माण करना हो तो पाषाण की शुभाशुभता पर विचार किया जाना चाहिए। पत्थर में कोई दाग, मण्डल या अन्य दोष है अथवा नहीं इसके लिए) निर्मल काँजी के साथ बिल्व के फल की छाल पीसकर पाषाण या काष्ठ पर लेप करने से उसका मण्डल (दाग) प्रकट हो जाता है। मधुभस्मगुडव्योम कपोतसदृशप्रभैः। माञ्जिष्ठेररुणैः पीतेः कपिलैः श्यामलैरपि। 184॥ चित्रैश्च मण्डलैरैभिरन्तर्जेया यथाक्रमम्। खद्योतो वालुका रक्तभेकोऽम्बुगृहगोधिका॥ 185॥ . . * स्तम्भादि के लिए मयमतम्, राजवल्लभ आदि में विस्तार से वर्णन आया है। **पट्ट या पाटियों, पटरों के सम्बन्ध में प्रमाणमञ्जरी आदि में विवरण आया है। वेध विचार मत्स्यपुराण, समराङ्गणसूत्रधार, अपराजितपृच्छा और उद्धारधोरणी में विस्तार से प्राप्त होता है।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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