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________________ 48 : विवेकविलास दूसरा सूत्र, बायीं पैंदी से दाहिने कन्धे तक तीसरा सूत्र और नीचे से मस्तक तक चौथा सूत्र- इन चारों सूत्रों का प्रमाण एक जैसा आए तो वह प्रतिमा समचतुस्र कहलाती है। सूत्रं जानद्वये तिर्यक् दद्यानाभौ च कम्बिकाम। प्रतिमायाः प्रतिसरो भवेदष्टादशाङ्गलः॥ 134॥ दो पैदियों के मध्य में एक तिर्यक् या तिरछा सूत्र देना और सूत्र से नाभि तक एक कम्बिका (एक गज प्रमाण) रखना, इस तरह करते हुए नाभि से सूत्र तक 18 अङ्गुल का प्रमाण होना चाहिए। नवतालप्रतिमानमाह - नवतालं भवेद्रूपं तालश्च द्वादशाङ्गलः। अङ्गलानि न कम्बायाः किं तु रूपस्य तस्य हि ॥ 135॥ सामान्यतया प्रतिमा की ऊँचाई का प्रमाण नवताल से रखना चाहिए। बारह अङ्गुल का एक ताल होता है। यहाँ अङ्गुलियों का प्रेमाण कम्बासूत्र (गज के अङ्गल) से ग्रहण न करते हुए प्रतिमा का ही ग्रहण करना चाहिए। अङ्गविभागमाह - ऊर्ध्वस्थप्रतिमामानमष्टोत्तरशतांशतः। आसीनप्रतिमामानं षट्ञ्चाशद्विभागतः ॥ 136॥ यदि स्थानक प्रतिमा हो तो उसका प्रमाण 108 अंश का और आसनस्थ प्रतिमा का प्रमाण 56 अंश का जानना चाहिए। 1. नवताल प्रतिमाओं के लक्षण चित्रसूत्र, शुक्रनीति, काश्यपशिल्प, प्रतिमामानप्रमाण या आत्रेयतिलक, मयशास्त्र, देवतामूर्तिप्रकरण, वास्तुमञ्जरी आदि में आए हैं। शुक्रनीति में (4, 4, 93-97) विस्तार से स्पष्ट किया गया है- नवतालं प्रमाणे तु मुखं तालमितं स्मृतम्। चतुरङ्गुल भवेद् ग्रीवा तालेन हृदयं पुनः ।। नाभ्यास्तमादध: कार्या तालनैकेन शोभिता। नाभ्याघश्व भवेनमेन्द्र भागमेकेन वा पुनः॥ द्वितालौहायतागुरु जानुवी चतुरङ्गलम्। जर्छ उरुसमे कार्या गुल्फाब्धश्चतुरङ्गलम् ॥ नवतालात्मकमिदं केशान्त त्र्यङ्गुलः कार्यमानात्। शिखावधि तु केशान्त त्र्यङ्गुलः कार्यमानत्। दिशावया विभजेत्सप्ताष्ट दशतालिका॥ मण्डन ने देवतामूर्तिप्रकरणम् में नवताल के मान से देहावयवों का मान निर्धारित किया है। इसके अनुसार मस्तक तीन अङ्गुल, मुख एक ताल या 12 अङ्गुल, ग्रीवा 3 अङ्गल, हृदय या छाती 10अङ्गुल, छाती से नाभि तक 12 अङ्गुल, नाभि से उदर तक 4 अङ्गुल, उदर से मेढ़ तक 8 अङ्गुल, मेढ़ से घुटना तक ऊरु 24 अङ्गुल अङ्गुल, घुटना 4 अङ्गुल, घुटना से पैर की गाँठ तक जङ्घा 24 अङ्गल तथा गाँठ से पदतल के भाग तक 4 अङ्गल- इस प्रकार 108 अङ्गल का मान प्रतिमा में ऊँचाई का स्वीकार्य है- नवतालं प्रवक्ष्यामि ब्रह्माद्या देवता तथा। केशान्तं च त्रिमात्रं तु कर्त्तव्यं देवरूपकम्॥ यावन्मानो भवेत्तालो विभजेद् रविभागकैः । सूर्य राम दशार्काब्धि वसु जैन युगार्हताः। वेदा वक्त्रगलौ वक्षो नाभिस्तूदरगुह्यकम्। तथोरू जानुनी जके चरणौ च यथाक्रमम् ॥ (देवतामूर्तिप्रकरणं 2, 27-29)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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