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________________ की नासिका पूर्ण बहती हो, उस ओर स्थान देना चाहिए। सम्मानविचारं - अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लास : : 45 आचार्याणां यतीनां च पण्डितानां कलाभृताम् । समुत्पाद्यः सदानन्दः कुलीनेन यथायथम् ॥ 118॥ सम्भ्रान्त मनुष्यों को चाहिए कि आचार्य, यति, पण्डित और कलाविदों को उनकी योग्यता के अनुसार आदर-सम्मान प्रदान कर प्रसन्न रखें। अथ निमित्तशास्त्रं -- विशेषज्ञानमधुना कलिकालवशाद्गतम् । • नित्यमेव ततश्चिन्त्यं बुधैश्चन्द्रबलादिकम् ॥ 119॥ ऋषियों द्वारा विचारित भविष्य के सम्बन्ध में जो ज्ञान पूर्व में था, वह कलिकाल के प्रभाव से गत हो गया है अतः ज्ञानियों को अपने कार्यों की सिद्धि के लिए चन्द्रबल, ताराबलादि पर विचार करना चाहिए । न निमत्तिद्विषां क्षेमं नायुर्वैद्यकविद्विषाम् । न श्रीनतिद्विषामेकमपि धर्माद्विषां नहि ॥ 120 ॥ ज्योतिष, सामुद्रिक, शकुन, स्वर, अङ्गविद्या, लग्नादि आठ प्रकार के निमित्तशास्त्रों से जो द्वेष करते हैं, उनका कभी कल्याण नहीं होता है । वैद्यकशास्त्र से द्वेष करने पर लक्ष्मी से वञ्चित हो जाना पड़ता है। धर्म से द्वेष करे तो वह व्यक्ति कल्याण, दीर्घायुष्य और लक्ष्मी - इन तीनो में से किसी एक को भी नहीं पाता है। निराहारे त्याज्यपदार्था: निरन्नैमैथुनं निद्रां वारिपानार्कसेवनम् । एतानि विषतुल्यानि वर्जनीयानि यत्नतः ॥ 121॥ निराहार या खाली पेट हो तब मनुष्यों को स्त्रीसङ्ग, निद्रा, जलपान और धूप सेवन- इतनी बातों को यत्नपूर्वक त्याग देना चाहिए । इसका कारण यह है कि उस समय ये विष तुल्य हैं। सुकृत्यप्रशंसामाह ――― सुकृताय न तृप्यन्ति सन्तः सन्ततमप्यहो । विस्मर्तव्या न धर्मस्य समुपास्तिस्ततः क्वचित् ॥ 122 ॥ सन्तपुरुष नित्यप्रति सुकृत्य करें तो भी वे कभी इन कार्यों से अघाते या तृप्त नहीं होते हैं। इसलिए धर्म की सेवा करना किसी भी समय भूलना नहीं चाहिए । धर्मस्थलसेवनफलं - - धर्मस्थाने ततो गम्यं श्रीमद्भिः कृतभूषणैः । प्राक्पुण्यं दर्श्यतेऽन्येषां स्वयं नव्यं ह्युपार्ज्यते ॥ 123 ॥ ऐसे सुखी पुरुषों को चाहिए कि वे वस्त्राभरण धारणकर धर्मस्थल पर जाएँ।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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