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________________ 40 : विवेकविलास आग्नेय कोण में मुँह रखकर पूजन करे तो दिन-प्रतिदिन द्रव्य की हानि होती रहती है । वायव्य कोण में मुँह रखने से सन्तान का अभाव और नैर्ऋत्य कोण में मुँह रखने से कुल का क्षय जानना चाहिए। इसी प्रकार ईशान कोण में मुँह रखकर पूजा करने वाले की स्थिति अच्छी नहीं रहती । अङ्घ्रिजानुकरांसेषु मूर्ध्नि पूजा यथाक्रमम् ॥ 90 ॥ श्रीचन्दनं विना पूजा नैव कार्या जिनेशितुः । भाले कण्ठे हृदम्भोजे उदरे तिलकं क्रमात् ॥ 91 ॥ पूजा करने वाले को सर्वप्रथम दोनों पाँव तदोपरान्त क्रमश: दोनों जङ्घा, दोनों हाथ, दोनों स्कन्ध और मस्तक पर पूजन करना चाहिए। केसर - चन्दन के अभाव में जिन प्रतिमा का पूजन किसी भी काल में नहीं करना चाहिए। कपाल, कण्ठ, हृदय, उदर इत्यादि स्थान पर क्रम से तिलक करने चाहिए। नवभिस्तिलकैः पूजा करणीया निरन्तरम् । प्रभाते प्रथमं वासपूजा कार्या विचक्षणैः ॥ 92 ॥ पूजनार्थी को चाहिए कि वह सदैव नौ तिलक करके जिन प्रतिमा का पूजन करे । विधिकारों, पूजा विज्ञों को प्रातः काल में पहले वास - पूजा करनी चाहिए । 1 मध्याह्ने कुसुमैः पूजा सन्ध्यायां धूपदीपतः । अर्हतो दक्षिण भागे दीपस्याथ निवेशनम् ॥ 93 ॥ जिनदेव की प्रतिमा का मध्याह्न में सुगन्धित पुष्पों से पूजन करना चाहिए और सन्ध्या काल में धूप-दीप से पूजा करे। जिन प्रतिमा के दक्षिण में दीपक निवेश करने या रखने का स्थान बनाना चाहिए। वामांशे धूपदहनमग्रे कूरं तु सम्मुखम् । ध्यानं तु दक्षिणे भागे चैत्यानां वन्दनं तथा ॥ 94 ॥ भगवान् की बायीं ओर धूपदान और आगे नैवेद्य रखना चाहिए। सदा प्रतिमा के सामने बैठकर ध्यान करना चाहिए। चैत्यवन्दन दक्षिण भाग में करना चाहिए । पूजाकार्येपुष्पग्रहणविधिं - गन्ध धूपाक्षतैः सद्भिः प्रदीपैर्बलिवारिभिः । शान्तौ श्वेतं तथा पीतं लाभे श्यामं पराभवे ॥ 95 ॥ मङ्गलार्थे तथा रक्तं पञ्चवर्ण तु सिद्धये । पञ्चामृते तथा शान्तौ दीपः स्याच्च गुडैर्धृतैः ॥ 96॥ पूजनार्थियों को चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, बलि एवं जल - इन वस्तुओं से भगवान् का पूजन करना चाहिए। पुष्प के वर्ण के प्रसङ्ग में यह ज्ञातव्य है कि
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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