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________________ प्रवेश करना चाहिए । सुगन्धमधुरैर्द्रव्यैः प्राङ्मुखो वाप्युदङ्मुखः । वामनाड्यां प्रवृत्तायां मौनवान्देवमर्चयेत् ॥ 84 ॥ इस दौरान स्वर-प्रवाह पर विचार करें । चन्द्र नाड़ी अर्थात् बायीं नासिका के चलते समय पूर्व या उत्तर की ओर मुँह रखकर मौन रहते हुए सुगन्धित पदार्थ और मिष्ठान्न से (धूप- नैवेद्यपूर्वक) देवपूजन करना चाहिए । गृहे देवालयस्थानं - अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लास : : 39 गृहे प्रविशता वामभागे सुस्थान संस्थितम् । देवतायतनं कुर्यात्सार्द्धहस्तोर्ध्वभूमिषु ॥ 85 ॥ अपने गृह में देवपूजन स्थल कहाँ हो, इस सम्बन्ध में कहा जा रहा है कि प्रवेश करते समय बायीं ओर देवमन्दिर रखना चाहिए और घर की भूमि से उक्त मन्दिर की भूमि डेढ़ हाथ ऊँची होनी चाहिए। निम्नभूमौदेवालयफलं - नीचैर्भूमिस्थितं कुर्याद्देवतावसथं यदि । नीचैनीचैस्ततौऽवश्यं सन्तत्यादि तदाभवेत् ॥ 86 ॥ यदि अपने गृह में नीची भूमि पर देव मंन्दिर बनाया जाएगा तो उस पुरुष की सन्तति इत्यादि नीच अवस्था में ही रहती है अर्थात् वे पतनोन्मुख होती हैं । पूजनावसरे मुखस्थितिं सफलं - पूजन: स्यादथो पूर्वमुखो वाप्युत्तरामुखः । दक्षिणदिदिशा वर्ज्या विदिग्वर्जनमेव च ॥ 87॥ पूजा करने वाले पुरुष को पूर्व या उत्तर दिशोन्मुख होकर बैठना चाहिए । दक्षिण, पश्चिम, आग्नेय (पूर्व-दक्षिण), नैर्ऋत्य (दक्षिण-पश्चिम), वायव्य (पश्चिमउत्तर) और ईशान (उत्तर-पूर्व) - ये छह दिशाएँ पूजन में वर्जित जाननी चाहिए। पश्चिमाभिमुखः पूजां जिनमूर्ते करोति चेत् । चतुर्थसन्ततिच्छेदो दक्षिणस्याम सन्ततिः ॥ 88॥ पश्चिम दिशा की ओर मुँह रखकर जो कोई जिन प्रतिमा का पूजन करता है, तो उसकी सन्तति का चौथी पीढ़ी में विच्छेद हो जाता है, ऐसा जानना चाहिए। इसी प्रकार दक्षिण में मुँह रखकर पूजन करें तो सन्तति कभी नहीं बढ़ती है । आग्नेय्यां च यदा पूजा धनहानिर्दिनेदिने । वायव्यां सन्ततिर्नैव नैर्ऋत्यां च कुलक्षयः ॥ 89 ॥ ईशान्यां कुर्वतां पूजां संस्थितिर्नोपजायते ।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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