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________________ 28 : विवेकविलास प्रवहमान रहते हैं, ज्ञानियों को ऐसा जानना चाहिए। ऊर्ध्वं वह्निरधौ वारि तिरश्वीनः समीरणः। भूमिर्मध्यपुटे व्योम सर्वगं वहते पुनः॥30॥ अग्नि तत्त्व की प्रकृति ऊर्ध्व चलने की है जबकि जल तत्त्व नीचे चलता है। वायु तत्त्व बायाँ या तिर्यक् चलता है। भूमि तत्त्व नासिका के मध्य में ही चलता है और आकाश तत्त्व सर्वत्र या दोनों में ही प्रवहमान रहता है। वायोर्वढेरपां पृथ्व्या व्योमस्तत्त्वं क्रमाद्हेत्। वहन्त्योरुभयोर्नाड्योातव्योऽयं क्रमः सदा॥31॥ सूर्य और चन्द्र इन दोनों नाड़ियों में प्रथम वायु और तदोपरान्त क्रमशः अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश तत्त्व अनुक्रम से प्रवहमान होते हैं। यह अनुक्रम हमेशा का समझना चाहिए। तत्त्वस्य पलानि पृथ्व्याः पलानि पञ्चाशच्चत्वरिंशत्तथाम्भसः। अग्नेस्त्रिंशत्पुनर्वायोविंशतिर्नभसो दश॥32॥ - सञ्चरण के अनुसार पृथ्वी तत्त्व पचास पल, जल तत्त्व चालीस पल, अग्नि. तत्त्व, तीस पल, वायु तत्त्व बीस पल और आकाश तत्त्व दस पल के अनुसार बहता प्रवाहकालसङ्ख्येयं हेतुर्बह्वल्पयोरथ। पृथ्वी पञ्चगुणा तोयं चतुर्गुणमथानलः ॥33॥ त्रिगुणो द्विगुणा वायुर्वियदेकगुणं भवेत्। गुणं प्रति दश पलान्युर्व्यापञ्चाशदित्यतः॥34॥ एकैकहानिस्तोयादेस्ते च पञ्चगुणाः क्षितौ। गन्धो रसश्च रूपं च स्पर्शः शब्दः क्रमादमी॥35॥ इस प्रकार पूर्व में पांचों तत्त्व कितने समय तक बहते हैं, कहा गया है। अब पाँचों ही तत्त्वों की स्थिति न्यूनाधिक क्यों है, इस सम्बन्ध में कहा जा रहा है कि पृथ्वी तत्त्व के गन्ध, रस, रूप, स्पर्श और शब्द-ये पाँच गुण हैं। जल तत्त्व के रस, रूप, स्पर्श और शब्द-ये चार गुण हैं। अग्नि तत्त्व के रूप, स्पर्श, और शब्द- ये * पवनविजयस्वरोदय में भी कहा है कि पृथ्वीतत्त्व से युक्त स्वर मध्य में, जलतत्त्वयुक्त स्वर नीचे की ओर, तेजतत्त्वमिश्रित स्वर ऊर्ध्व, वायुतत्त्व से युक्त स्वर तिरछा एवं आकाशतत्त्व से मिश्रित स्वर दो स्वरों के प्रवाह के रूप में चलता है- मध्ये पृथ्वी ह्यधश्चापश्चोर्ध्व वहति चानलः । तिर्यग्वायुप्रवाहश्च नभो वहति सक्रमः ॥ (स्वरोदय 154)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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