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________________ 272 : विवेकविलास और आत्मा इन दोनों का मध्यस्थ भाव ही तत्त्व कहलाता है। क्षेत्रक्षेत्रज्ञवर्णनं - - अलक्ष्यः पञ्चभिस्तावदिन्द्रियैनिकटैरपि। . स तु लक्षयते तानि क्षेत्रज्ञोऽलक्ष्य इत्यसौ॥ 57॥ . निकटस्थ इन्द्रियाँ भी आत्मा को नहीं देख पातीं। परमात्मा इन्द्रियों को देखता है। अतएव आत्मा क्षेत्रज्ञ व अलक्ष (जो दीखता नहीं) कहलाता है। ... आगतं बीजमन्यस्य क्षेत्रेऽन्यस्य निधीयते। चित्रं क्षेत्रज्ञ एवात्र प्ररोहति यदा तदा॥58॥ अन्य क्षेत्र का उगाया गया बीज किसी अन्य क्षेत्र में बोया जाता है और उस क्षेत्र में क्षेत्रज्ञ (क्षेत्र का जानकार, आत्मा) ऊगता है, यह बहुत आश्चर्यकारी है। परमाणुरतिस्वल्पः खमतिव्यापकं किल। तौ जितौ येन महात्म्यान्नमस्तस्मै परात्मने।59॥ अति ही सूक्ष्म परमाणु और सर्वव्यापी आकाश- इन दोनों वस्तुओं को अपने माहात्म्य से विजय वाले परमात्मा को नमस्कार है। आत्मद्रव्ये समीपस्थे योऽपरद्रव्यसम्मुखः। भ्रान्त्या विलोकयत्यज्ञः कस्तस्माद्वालिशोऽपरः॥60॥ जो अनजान जीव आत्मरूप द्रव्य के अपने पास होते हुए भी अन्य द्रव्य (धन) की ओर भ्रान्तिपूर्वक देखता है, उसके जैसा अन्य कौन मूर्ख होगा? परमात्मागस्त्यस्मृत्या चित्रं संसारसागरः। असंशयं भवत्येव प्राणिननां चुलुकोपमः॥61॥ जो भव्य जीव हैं, उनके लिए परमात्मा रूप अगस्त्य ऋषि के स्मरण से यह संसाररूप सागर निश्चय ही चुल्लूवत् हो जाता है, निश्चय ही यह बड़ा आश्चर्य है। संसारमोक्षश्चाह - आत्मानमेव संसारमाहुः कर्माभिवेष्टितम्। तमेव कर्मनिर्मुक्तं साक्षान्मोक्षं मनस्विनः ।। 62॥ * गीता में भी क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का वर्णन हुआ है। **यह प्रसिद्ध है कि अगस्त्य मुनि के लिए समुद्र एक चुल्लू जितना हो गया था। वराहमिहिर ने कहा है कि अगस्त्य ने सूर्य-पथ को रोकने लिए बढ़ते विन्ध्याचल को रोक दिया, मुनियों का उदर विदीर्ण करने वाले, देवताओं के शत्रु वातापी राक्षस को पचा लिया व समुद्र का पान कर लियाभानोर्वर्त्मविघातवृद्धशिखरो विन्ध्याचल: स्तम्भितो वातापिर्मुनिकुक्षिभित् सुरसिपुजीर्णश्च येनासुरः । पीतश्चाम्बुनिधिस्तपोम्बुनिधिना याम्या च दिग्भूषिता तस्यागस्त्यमुनेः पयोधुतिकृतश्चारः समासादयम्॥ (बृहत्संहिता 12, 1 एवं समासंहितोक्त श्लोक, भट्टोत्पलीयविवृति में उद्धृत)।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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