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________________ 258 : विवेकविलास प्रायश्चितं शुभध्यानं स्वाध्यायो विनयस्तथा। वैयावृत्त्यमथोत्सर्गस्तपः षोढान्तरं भवेत्॥26॥ इसी प्रकार छह प्रकार के आन्तरिक तप कहे हैं-1. प्रायश्चित, 2. शुभध्यान, . 3. स्वाध्याय, 4. विनय, 5., वैयावृत्त और 6. काउसग्ग। दुःखव्यूहावहाराय सर्वेन्द्रियसमाधिका। आरम्भपरिहारेण तपस्तप्येत शुद्धधीः ॥27॥ अपने मन के परिणाम को शुद्ध रखने वाला मनुष्य सब इन्द्रियों को समाधि में रखकर सर्वारम्भों को त्यागकर दुःखों का समुदाय टालने के लिए तपस्या करता है। पूजालाभप्रसिद्धयेथ तपस्तप्येत योऽल्पधीः। शोष एव शरीरस्य न तस्य तपसः फलम्॥28॥ जो अल्प बुद्धि पूजनिक होने के लिए, लाभ के लिए अथवा प्रसिद्धि के लिए तपस्या करता है वह मात्र शरीर को सुखाता है। उसे तपस्या का फल नहीं मिलता है। विवेकेन विना यच्च तत्तपस्तनुतापकृत्। अज्ञानकष्टमेवेदं न भूरिफलदायकम्॥29॥ विवेक बिना तपस्या से मात्र शरीर का ताप होता है। यह केवल अज्ञान कष्ट ही होता है, इससे बहुफल लब्ध नहीं होता। दृष्टिहीनस्य पङ्गोश्च संयोग गमनादिकम्। यथा प्रवर्तते ज्ञानक्रियायोगे शिवं तथा॥30॥ अन्धा और विकलाङ्ग यदि मिल जाए वे एक दूसरे की सहायता से कहीं भी आ-जा सकते हैं, वैसे ही ज्ञान और क्रिया का योग होने से शिव या मोक्ष होता है। शरीरं यौवनं वित्तं संयोगं च स्वभावतः। इदं नित्ययनित्यत्वा घ्रातं जानीहि सर्वतः॥31॥ हे जीव! यह सर्वथा जान लेना चाहिए कि शरीर, युवावस्था, धन और सब प्रकार के संयोग ये सब स्वभाव से ही अनित्य है। शनचक्र्यादयोऽप्येते म्रियन्ते कालयोगतः। . तदत्र शरणं यातु कः कस्य मरणागमे॥32॥ यह भी निश्चित है कि इन्द्र व चक्रवर्ती भी काल की मर्यादा पूरी होने पर मरण पाते हैं। इसलिए जगत् में मृत्युकाल आने पर कौन किसके शरण जाता है? अस्यार्थे दृष्टान्तमाह -
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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