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________________ ____अथ धर्मोत्पत्तिप्रकरणं नामाख्यं दशमोल्लास: : 257 आस्तां सर्वपरित्यागालङ्कृतस्य महानुनेः। गृहिणोऽपि हितं ब्रह्म लोकद्वयसुखेषिणः॥20॥ सर्वस्व त्यागी महामुनि की बात तो दूर रही परन्तु इस लोक और परलोक में सुख की इच्छा करने वाले गृहस्थों को भी ब्रह्मव्रत का पालन हितकारी है। तिर्यग्देवासुरस्त्रीच परस्त्रीश्चापि यस्त्यजेत्। सोऽपि धीमान् से तु स्तुत्यो यः स्वदाररतिः सदा॥21॥ जो मनुष्य अपनी स्त्री पर इच्छा रखकर तिर्यश्च की, देवता की और भवनपति की स्त्रियों का और मनुष्य योनि में परस्त्री का त्याग करे वह बुद्धिमान और वही प्रशंसा करने के योग्य समझना चाहिए। तनौ यदि नितम्बिन्याः प्रमादाक्पतत्यहो। चिन्तनीया तदैवात्र मलमूत्रादि संस्थितिः॥22॥ यदि कभी प्रमाद के कारण किसी स्त्री के शरीर पर दृष्टि चली जाए तो उसी समय उस स्त्री के शरीर में स्थित मल, मूत्र आदि बुरी वस्तुओं पर ध्यान देकर अपना ध्यान उसके सौन्दर्यादि से हटाना चाहिए। ..अज्ञातपरमानन्दो लोकोऽयं विषयोन्मुखः। ____अदृष्टनगरैामः पामरैरुपसर्म्यते॥23॥ - परमानन्द स्वरूप को नहीं जानने वाले लोग विषय-सुख में डूबे रहते हैं, यह ठीक वैसे ही समझना चाहिए कि नगर दर्शन से वञ्चित लोग देखे हुए गाँव की ही ' प्रशंसा करते हैं। - परानन्दसुखास्वादी विषय भिभूयते। . जाङ्गलीजयनिष्कम्पः किं सर्परुपसर्ग्यते॥24॥ विषय कभी परमानन्द सुख को चखने वाले मनुष्य को अपने वशीभूत नहीं कर सकते हैं। गारुड़ी विद्या में निपुण मनुष्य के आगे सर्प अपने आप कैसे आएगा? अथ बहिर्तप - रसत्यागस्तनुक्लेश औनोदर्यमभोजनम्। लीनता वृत्तिसक्षेपस्तपः षोढा बहिर्भवम्॥25॥ ये छह प्रकार के बाह्य तप के कहे जाते हैं- 1. रसत्याग, 2. कायक्लेश, 3. ऊनोदरी (प्रमाण से अल्पाहार), 4. उपवास, 5. अङ्गोपाङ्ग सङ्कुचित कर बैठना और 6. वृत्तिसंक्षेप। अन्त:तप
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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