SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 24 : विवेकविलास आलोक इव सूर्यस्य स्वजनस्योपकारवत् । ग्रन्थोऽयं सर्वसामान्यो मान्यो भवतु धीमताम् ॥ 12 ॥ जिस प्रकार सूर्य का उजाला स्वयं प्रभाव न रखते हुए समस्त वस्तुओं को दैदिप्यमान करता है और सत्पुरुष पक्षपात नहीं कर सबके लिए समानतः उपकार करते हैं, वैसे ही मेरा यह ग्रन्थ सर्वसामान्य के ( जातिगत आधार पर अथवा अन्य किसी भी प्रकार का भेदभाव के बिना) उपयोग में आए, विद्वज्जनों द्वारा स्वीकृत हो, ऐसी कामना है। नित्यजीवनचर्याः धर्मा-र्थ-काम-मोक्षाणां सिद्ध्यै ध्यात्वेष्टदेवताम् । भागेऽष्टमे त्रियामाया उत्तिष्ठेदुद्यतः पुमान् ॥ 13 ॥ आत्मार्थी, कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- इस पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति के लिए अपने इष्टदेव का ध्यान कर रात्रि का आठवाँ भाग (सूर्योदय पूर्व लगभग चार घड़ी) शेष रहे तब शय्या का त्याग कर दे।* स्वप्नविचार: सुस्वप्नं प्रेक्ष्य न स्वप्यं कथ्यमह्नि च सद्गुरोः । दुःस्वप्नं पुनरालोक्य कार्यः प्रोक्तविपर्ययः ॥ 14 ॥ यदि कभी शुभ स्वप्न हो तो पुनः नहीं सोना चाहिए। सूर्योदय के पश्चात् वह स्वप्न सद्गुरु को अथवा उनके अभाव में भगवान के सम्मुख अथवा गाय के कान में कहना चाहिए। यदि अशुभ स्वप्न हो तो पुनः सो जाना चाहिए और वह स्वप्र किसी के सामने नहीं कहना चाहिए।" समधातोः प्रशान्तस्य धार्मिकस्यापि नीरुजः । स्यातांपुंसो जिताक्षस्य स्वप्नौ सत्यौ शुभाशुभौ ॥ 15 ॥ * आचारेन्दुशेखर में कहा गया है कि ब्राह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली है। उस समय जो कोई शयन करता है उसे प्रायश्चित करना चाहिए - ब्राह्म मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी । तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छ्रेण शुद्ध्यति ॥ ( आचारेन्दु- पृष्ठ 17 ) ** गणपतिरावल का मत है कि दूषित स्वप्न ब्राह्मण से निवेदित कर आशीर्वाद लेना चाहिए। दुबारा नहीं सोना चाहिए न ही पुनः कथन करें। पवित्र जल से स्नान करें। मृत्युञ्जय का हवन करें, शान्ति व स्वस्त्ययनादि शुभ कार्य, पीपल एवं गाय की सुबह पूजा करें। भारतादि का श्रवण करें और बृहस्पति द्वारा रचे गए स्वप्राध्याय का पाठ करें। इससे दूषित स्वप्न निष्फल होता है— दुष्टं त्वालोकिते स्वप्ने निवेद्य ब्राह्मणाय च । आशीर्भिस्तोषितो विप्रैः पुनः स्वप्यान्नरेश्वरः ॥ न ब्रूयाच्च पुनः स्वप्नं स स्नानात् पुण्यवारिभिः । कार्यो मृत्युञ्जयो होमः शान्तिः स्वस्त्ययनादिकम् ॥ सेवाश्वत्थगवां प्रातर्दानं स्वर्णादि शक्तितः । श्रवणं भारतादीनां स्वप्नदोषनिवृत्तये ॥ बृहस्पतिप्रणीतञ्च स्वप्राध्यायं पठेदपि ॥ (मुहूर्तगणपति 21, 87-90)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy