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________________ अथ दिनचर्यायां प्रथमोल्लास: : 23 कार्यः सद्भिस्ततोऽवश्यमस्यै तद्दातुमुद्यमः। यद्दाने जायते दातुर्भुक्तिर्मुक्तिश्च निश्चला॥7॥ इसलिए ज्ञानियों को चाहिए कि वे लक्ष्मी रूपी कल्पलता को इस ग्रन्थ में कहे हुए वचन रूपी खाद देने का अवश्यमेव उपक्रम करें क्योंकि उससे स्वर्गादि सुखों की लब्धि और अन्त में निश्चल मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। ब्रवीमि सर्वशास्त्रेभ्यः सारमुद्धृत्य किञ्चन। पुण्यप्रसवकृत्स्वर्गापवर्गफलपेशलम्॥8॥ पूर्वकाल में विभिन्न आचार्यों द्वारा प्रणीत विविध विषयाधारित समस्त शास्त्रों से सार-सारं को ग्रहण कर, जिससे कि पुण्य की उत्पत्ति और स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसे कतिपय वचनों को यहाँ लिख रहा हूँ। ग्रन्थावश्यकत्वकथनश्च स्वस्यान्यस्यापि पुण्याय कुप्रवृत्तिनिवृत्तये। श्रीविवेकविलासाख्यो ग्रन्थः प्रारभ्यते मितः॥9॥ अब अपने निमित्त एवं अन्य लोगों के पठन-पाठन, श्रवण के उद्देश्य से सुकृत की प्राप्ति होने के हेतु से यह 'विवेक विलास' नामक ग्रन्थ संक्षेप से प्रारम्भ करता हूँ। प्रवृत्तावत्र यो यत्नः क्वचित्कश्चित्प्रदर्शितः। विवेकिनादृतः सोऽपि निवृत्तौ पर्यवस्यति॥10॥ इस ग्रन्थ में जहाँ कहीं प्रवृत्ति मार्ग अर्थात् मनुष्य जीवनोपयोगी व्यवहार के मार्ग के प्रतिपादन का प्रयास किया गया है, विवेकी जनों को चाहिए कि वे उसका आदर करें क्योंकि वह मार्ग निवृत्ति मार्ग अर्थात् परमार्थ-पथ से ही जाकर मिलता है। अगदः पावकः श्रीदो जगच्चक्षुः सनातनः। एतैरन्वर्थतां यातु ग्रन्थोऽयं पाठकैः सह ॥11॥ यह ग्रन्थ कर्म रूपी व्याधि को औषधि के समान उपचारित करने वाला; पढ़ने व सुनने वालों को पवित्र करने वाला; लक्ष्मी प्रदाता है; अज्ञानरूप तिमिर का विनाश करने में सूर्य समान होकर इस संसार में चिरकाल पर्यन्त रहे और इस ग्रन्थ का पठन करने वाले भी निरापद, निरोग, पवित्र, कुबेर जैसे समृद्धिशाली, सूर्य के समान तेजोमय और पूर्ण आयुष्य भोगने वाले हों, ऐसी अपेक्षा है। • यहाँ ग्रन्थकार की यह स्वीकारोक्ति है कि वह ग्रन्थ में आए विविध विषयों को पूर्वाचार्यों के मतानुसार ग्रहण कर संक्षिप्त रूप से लिख रहा है। प्रस्तुत पाठ में यथास्थान इसका सङ्केत किया जाएगा।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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