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________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास: : 239 सम्मुख विचार-विमर्श करना चाहिए। सालस्यैर्लिङ्गिभिर्दीर्घसूत्रिभिः स्वल्पबुद्धिभिः। समं न मन्त्रयेनैव मन्त्रं कृत्वा विलम्ब्यते॥381॥ प्रमादी, वेषधारी, काम निकालने वाला और अल्प बुद्धि के लोगों के साथ कभी गम्भीर मुद्दों पर सलाह नहीं करनी चाहिए। सलाह कर लेने के बाद समय व्यतीत नहीं करना चाहिए। भूयांसः कोपना यत्र भूयांस सुखलिप्सवः। भूयांसः कृपणाश्चैव स सार्थः स्वार्थनाशकः॥ 382॥ जिस समुदाय में अति क्रोधी, सुख-लोलुप और कृपण लोग रहते हैं, वह लोक समुदाय में अपना हित खो बैठता है। सर्वकार्येषु सामर्थ्य माकारस्य च गोपनम्। धृष्टत्वं च सदाभ्यस्तं कर्तव्यं विजिगीषुणा ॥ 383॥ जय के अभिलाषी व्यक्ति को समस्त कार्य में स्वयं सामर्थ्यवान होना चाहिए। हृदय की बात कभी चेहरे से प्रतीत नहीं हो, ऐसा प्रयास करें और सदैव धृष्टत्व का अभ्यास करना चाहिए। भवेत्परिभवस्थानं पुमान् प्रायो निराकृतिः। विशेषाडम्बरस्तेन न मोच्यः सुधिया क्वचित्॥384॥ आडम्बर (परिचय-प्रदर्शक) नहीं रखने वाले मनुष्य की प्रायः मानखण्डना होती है। इसलिए समझदार को अपना आडम्बर किसी भी जगह नहीं छोड़ना चाहिए। अविश्वस्तजनाः - विश्वासो नैव कस्यापि कार्य एषां विशेषतः। . ज्ञानिप्ररूपिताशेष धर्मविच्छेदमिच्छताम्॥ 385॥ . स्वमतारोपणोत्पन्नरौद्रार्तध्यानधारिणाम्। पाखण्डिनां तथा क्रूरसत्त्वप्रत्यन्तवासिनाम्॥386॥ धूर्तानां प्राग्विरुद्धानां बालानां योषितां तथा। स्वर्णकारजलानीनां प्रभूणां कूटभाषिणाम्॥387॥ नीचानामलसानां च पराक्रमवतां तथा। कृतघ्रानां च चौराणां नास्तिकानां च जातुचित्॥388॥ विवेकवान् को किसी का विश्वास नहीं करना चाहिए और विकृत धर्म या धर्म से विच्छेद करने की इच्छा वाले, अपने ही मत का आरोपण करने वाले और
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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