SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 220 : विवेकविलास (अब बौद्धमत के विषय में कहा जा रहा है) बौद्ध बुद्धदेव के प्रति आस्थावान होते हैं और जगत् को क्षणभङ्गर और चार आर्यसत्यों, तत्त्वों को मानते हैं। दुःखमायतनं चैव ततः समुदयो मतः।। मार्गश्चैतस्य च व्याख्या क्रमेण श्रूयतामतः ।। 266॥ बौद्धधर्म में स्वीकार्य चार आर्य सत्य हैं-1. दु:ख, 2. आयतन, 3. समुदाय, और 4. मार्ग। अब इन तत्त्वों की व्याख्या अनुक्रम से सुनिये। 266 ॥* दुःखं संसारिणः स्कन्धास्ते च पञ्च प्रकीर्तिताः। विज्ञानं वेदना सझा संस्कारो रूपमेव च ॥ 267॥" बौद्धमतानुसार संसारी स्कन्ध ही दुःख है और ये स्कन्ध पाँच हैं- 1. विज्ञान स्कन्ध, 2. वेदना स्कन्ध, 3. संज्ञा स्कन्ध, 4. संस्कार स्कन्ध और 5. रूप स्कन्ध। पञ्चेन्द्रियाणि शब्दाद्या विषयाः पञ्च मानसम्। धर्मायतनमेतानि द्वाद्वशायतनानि च ॥ 268॥ पाँच इन्द्रियाँ, शब्दादि पाँच विषय, चित्त और सुख-दुःखादि धर्मों का आधार शरीर- ये बारह आयतन कहे गए हैं। रागादीनां गणो यस्मा त्समुदेति नृणां हृदि। आत्मात्मीयस्वभावाख्यः स स्यात्समुदयः पुनः॥269॥ आत्मात्मीय स्वभाव नाम से प्रसिद्ध जो राग-द्वेषादि विकार मनुष्य के हृदय में एकत्रित होते हैं, वे समुदाय कहलाते हैं। क्षणिकाः सर्वसंस्कारा इति या वासना स्थिरा। स मार्ग इति विज्ञेयः स च मोक्षोऽभिधीयते॥ 270॥ समस्त संस्कार क्षणिक हैं-ऐसी जो दृढ़ीभूत वासना, वही मार्ग जानना चाहिए और वही मोक्ष कहलाता है। बौद्धमतमित्थंमभ्यधायि - * हरिभद्रसूरि का मत है- तत्र बौद्धमते तावद्देवता सुगतः किलः । चतुर्णामार्यसत्यानां दुःखादीनां प्ररूपकः ॥ (षड्दर्शन. बौद्ध. 4) चत्वार्यार्यसत्यानि- दुःखं समुदयो निरोधो मार्गश्चेति । (धर्मसं. पृष्ठ 5) **यह श्लोक षड्दर्शनसमुच्चय (बौद्ध. 5) और आदिपुराण (5, 24) में आया है। 9 यह श्लोक षड्दर्शनसमुच्चय (बौद्ध. 8) में आया है। विसुद्धमग्ग. में आया है- आयतनानि द्वादशायतनानि चक्खायतनं, रूपायतनं, सोतायतनं, सद्दायतनं, घानायतनं, गन्धायतनं, रसायतनं, 'कायायतनं, फोट्ठाब्बायतनं, मनायतनं, धम्मायतन। (वि. म. पृष्ठ 334)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy