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________________ 202 : विवेकविलास हुए सर्पादि जिसको काट लें, वह मनुष्य जीवित रहे इसमें संशय नहीं है। अथ दंशबिचारः सपयःशोणिता दंशाश्चत्वारो युगपद्यदि। एको वा शोफवान् सूक्ष्मो दंश आवर्तसन्निभः ॥ 158॥ दंशः काकपदाकारो, रक्तवाही सगर्तकः। त्रिरेखः श्यामलः शुष्कः प्राणसंहारकारकः।। 159॥ काटे हुए स्थान से यदि जल और रक्त पृथक्-पृथक् गिरते हों ऐसे चार दंश साथ हुए हों; एक ही दंश सूजन वाला, जल के भ्रमर जैसा और पतला, कौवे के पाँव जैसे आकार वाला, रक्त झरता हुआ और खड्डेवाला अथवा तीन रेखाओं वाला, काला और सूखा हुआ हो तो वह व्यक्ति अवश्य प्राण त्याग करता है। सञ्चरत्कीटिकास्पृष्ट इव वेधी च दाहकृत्। कण्डमान सविषो ज्ञेयो दंशोऽन्यो निर्विषः पुनः।। 160॥ कीट के काटने जैसा, बिन्धना जैसा, जलन और खाज उत्पन्न करने वाला दंश विष वाला होता है और यदि ऐसे लक्षण न हो तो विष रहित जाने। अथ दूतविचारमाह - तैलाक्तो मुक्तकेशश्च सशस्त्रः प्रस्खलद्वचाः। ऊर्वीकृतकरद्वन्द्वो रोगग्रस्तो विहस्तकः॥ 161॥ रासभं महिषं मत्तकरभं चाधिरूढवान्। अपद्वारसमायातः कांदिशीकश्चलेक्षणः॥ 162॥ एकवस्त्रो विवस्त्रश्च वृतास्यो जीर्णचीवरः। वाहिनीविकृतः क्रुद्धो दूतो नूतनजन्मने ॥ 163॥ (मान्त्रिक के यहाँ पर विष निवारण के लिए प्रयोजन से आया दूत यदि) सिर पर तेल लगाकर, नग्न सिर और हाथ में शस्त्र लेकर आया हुआ, लथड़ते वाक्य बोलने वाला, दोनों हाथ ऊँचा करके आया हुआ, रोगी, व्याकुल हुआ, गधा, भैंसा अथवा ऊँट पर बैठकर आया हुआ, भयभीत, चञ्चल आँख वाला, पहने हुए वस्त्र के अतिरिक्त अन्य वस्त्र नहीं रखने वाला, वस्त्ररहित, मुँह ढांककर आया हुआ, जीर्ण वस्त्र धारण किए, नदी पार करने से भीगा हुआ या क्रुद्ध दूत हो तो विष पीड़ित मनुष्य की मृत्यु जाने। स्थिरो मधुरवाक् पुष्पाक्षतपाणिर्दिशि स्थितः। एकजातिव्रतो दूतो धूतोरगविषव्यथः॥ 164॥ इसके विपरीत स्थिर, मधुर वचन बोलने वाला, हाथ में पुष्प या अक्षत लेकर
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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