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________________ अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लास: : 175 आषाढ़ शुक्ला प्रतिपदा को पुनर्वसु नक्षत्र का जितना भाग हो, उतनी ही वृष्टि पावसकाल में होगी, ऐसा जानना चाहिए। इत्यमनन्तर वास्तुशुद्धगृहक्रमाह - वैशाखे श्रावणे मार्गे फाल्गुन क्रियते गृहम्। शेषमासेषु न पुनः पौषो वाराहसम्मतः॥56॥ (अब वास्तु-शास्त्रानुसार भूमिपरीक्षा, गृहविधि कही जा रही हैं) वैशाख, श्रावण, मार्गशीर्ष और फाल्गुन- इन चार मासों में नए गृह का निवेश करें, अन्य किसी मास में नहीं किन्तु आचार्य वराहमिहिर के मतानुसार पौष मास में भी गृहनिवेश किया जा सकता है। रव्यसङ्क्रान्त्यानुसारेण द्वारविचारं मृगसिंहकर्ककुम्भेऽकें प्राक्प्रत्यग्मुखं गृहम्। वृषाजालितुलास्थे तूदग्दक्षिणमुखं शुभम्॥57॥ कन्यायां मिथुने मीने धनस्थे च रवी सति। नैव कार्य गृहं कैश्चिदिदमप्यभिधीयते।।58॥ कर्क, सिंह, मकर, और कुम्भ- इन चार राशियों में से चाहे जिस राशि में सूर्य हो तब पूर्व अथवा पश्चिम दिशा की ओर गृह बनाना चाहिए। मेष, वृषभ, तुला और वृश्चिक- इन चार में से किसी भी राशि में सूर्य हो तब उत्तर या दक्षिणाभिमुख गृह बनाना चाहिए। मिथुन, कन्या, धनु और मीन- इन चार में से किसी भी राशि में सूर्य हो तो नवीन गृह नहीं बनाएँ, ऐसा कई ग्रन्थकारों का मत है।" * गृहारम्भ में मासानुसार फल विश्वकर्मा ने इस प्रकार बताया है- चैत्रे शोककर विद्याद् वैशाखे च धनागमम् ।। ज्येष्ठे गृहाणि पीड्यन्ते आषाढे पशुनाशनम्। श्रावणे धनवृद्धिश्च शून्यं भाद्रपदे भवेत्॥ कलहश्चाश्चिने मासे भृत्यनाशनच कार्तिके। मार्गशीर्षे धनप्राप्ति: पौषे च धनसम्पदः ॥ माघे चाग्निभयं कुर्यात् फाल्गुने श्री: शुभोत्तमा । (ज्ञानप्रकाशदीपार्णव 1, 3-6) महेश्वराचार्य का मत है कि गृहारम्भ के लिए श्रावण, मार्गशीर्ष, वैशाख, पौष तथा फाल्गुन मास शुभ है किन्तु चन्द्रमा सम्मुख हो, पृष्ठभाग में नहीं। मेष, वृश्चिक, तुला और वृष राशिस्थ सूर्य हो तब उत्तर-दक्षिणाभिमुख गृह बनाए। इसी प्रकार कुम्भ, सिंह, कर्क और मकर राशिस्थ सूर्य हो तब पूर्व-पश्चिमाभिमुख गृह बनाया जाना चाहिए- कार्य श्रावणमार्गशीर्षसहिते वैशाखमास्यालयं पौषे फाल्गुनसंयुतेन च विधावग्रस्थिते पृष्ठगे। याम्योदङ्मुखमादि वृश्चिकतुलागोस्थे रवौ स्याद् गृहं प्रत्यक् प्राङ्मुखजं गृहं घटहरी कीटं च नक्रं गते ॥ (वृत्तशतं 66) **श्रीपति का मत है कि कर्क (श्रावण), नक्र (माघ), सिंह और कुम्भ राशि के सूर्य में (कुम्भ संक्रान्ति विशिष्ट फाल्गुन मास में) पूर्वमुखी द्वार व पश्चिम दिशा में दरवाजे का मुख; तुला, मेष, वृष, वृश्चिक राशि के सूर्य में दक्षिण और उत्तर दिशा में द्वारमुख रख रखकर गृह निर्माण करना चाहिए। यहाँ कुम्भ के रवि और फाल्गुन मास को एकत्र करने से एकवाक्यता होती हैकर्किनक्रहरिकुम्भगतेऽर्के पूर्वपश्चिममुखानि गृहाणि । तौलिमेषवृश्चिकयाते दक्षिणोत्तरमुखानि च कुर्यात्॥ (रत्नमाला 17, 15)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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