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________________ उत्पातफलस्य स्थानाह - अथ जन्मचर्या नाम अष्टमोल्लासः : 167 अन्तःपुरपुरानीककोशयानपुरोधसाम् । राजपुत्रप्रकृत्यादेरपि रिष्टफलं भवेत् ॥ 21 ॥ उक्त उत्पातों का फल किसे, कहाँ होता है कि अन्त: पुर, नगर, सेना, कोष, वाहन, पुरोहित, राजा, राजपुत्र और प्रधान इत्यादि राज्य परिवार को (दैवकल्पित) उत्पात का फल होता है। फलपाकावधिं च शान्त्यर्थनिर्देशं पक्षमासतुषण्मास वर्षमध्ये न चेत्फलम् । रिष्टं तद्व्यर्थमेव स्यादुत्पन्ने शान्तिरिष्यते ॥ 22 ॥ यदि एक पखवाड़े में, एक मास, दो मास अथवा एक वर्ष में उक्त उत्पात का फल नहीं तो उस उत्पात को व्यर्थ जानना चाहिए और यदि फल हो तो शीघ्र सम्बन्धित शान्ति करवानी हितकारी है।" तत्रैव विपर्ययविचारं दौस्थ्ये भाविनि देशस्य निमित्तं शकुनाः सुराः । देव्यो ज्योतिषमन्त्रादि सर्वं व्यभिचरेच्छुभम् ॥ 23 ॥ यदि देश की परिस्थिति बुरी होने को हो तो निमित्त, शकुन, देवी-देवता, ज्योतिष और मन्त्रादि शुभ हों तो भी विपरीत फल देते हैं। प्रवासयन्ति प्रथमं स्वदेवान् परदेवताः । दर्शयन्ति निमित्तानि भङ्गे भाविनी नान्यथा ॥ 24 ॥ देश-प्रदेशादि का नाश होने वाला हो तब ही पराए देव अपने देव को निष्कासित कर डालते हैं और दुष्टोत्पात दिखाते हैं किन्तु देशादि का भङ्ग होने का न हो तो ऐसा नहीं होता है। अधुना आग्नेयादि चतुर्नक्षत्रमण्डलं वर्णनं विशाखा भरणी पुष्पं पूर्वफा पूर्वभा मघा । कृत्तिका चेति नक्षत्रैराग्नेयं मण्डलं मतम् ॥ 25 ॥ ( अब भूकम्पादि के फलाफल के लिए मण्डलों के विषय में कहा जा रहा तुलनीय - आत्मसुतकोशवाहनपुरदारपुरोहितेषु लोके च । पाकमुपयाति दैवं परिकल्पितमष्टधा नृपतेः ॥ (बृहत्संहिता 46, 7) तथा गर्ग वचन • पुरे जनपदे कोशे वाहनेऽथ पुरोहिते पुत्रेष्वात्मनि भृत्येषु पश्यते दैवमष्टधा ॥ (तत्रैव भट्टोत्पलीय विवृति में उद्धृत) ― * * मत्स्यपुराण के 228वें अध्याय में अद्भुत शान्तियों का वर्णन 29 श्लोकों में आया है। इसी प्रकार से बृहत्संहिता भी शान्ति के उपाय लिखे गए हैं।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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