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________________ 166 : विवेकविलास फल आ जाएँ क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्गों को भय उत्पन्न होता है। वृक्षे पत्रे फले पुष्पे वृक्षः पुष्पं फलं दलम्।। जायते चेत्तदा लोके दुर्भिक्षादि महाभयम्॥15॥ यदि वृक्ष पर वृक्ष, पत्र पर पत्र, फल पर फल और फूल पर फूल लगा हुआ दिखाई दे तो जगत् में बहुत भयङ्कर दुर्भिक्ष आदि होता है। पशुपक्षिवैकृत्यं सफलमाह - गोध्वनिर्निशि सर्वत्र कलिर्वा दर्दुरः शिखी। श्वेतकाकश्वगृधादि भ्रमणं देशनाशनम्॥16॥ यदि रात्रि में सर्वत्र गायों का रम्भाना सुना जाए, जहाँ-तहाँ कलह होता जान पड़े, मेंढ़क के शिखा उत्पन्न हो जाए और सफेद कौआ, कुत्ते व गीद्ध आदि पक्षी इधर- उधर घूमते दिखाई दें तो देश का नाश जानना चाहिए। अपूज्यपूजा पूज्यानामपूजा करिणीमदः । शृगालोऽह्निलपेद्रात्रौ तित्तिरिश्च जगद्भिये॥17॥ यदि पूजने योग्य पुरुषों की पूजा नहीं हो और नहीं पूजने योग्य पुरुषों की पूजा हो, हथिनी के गण्डस्थल में मद भरा प्रतीत हो, सियार दिन को शब्द करे और रात्रि को तीतर पक्षियों का बोलना हो तो जगत् भयकारक होते हैं। खरस्य रसतश्चापि समकालं यदा रसेत्। अन्यो वा नखरो जीवो दुर्भिक्षादि तदा भवेत्॥18॥ जिस काल में गधा रेंकता हो, उसी समय उसके साथ कोई दूसरा नाखून वाला पशु भोंकता सुनाई दे तो दुर्भिक्ष आदि फल होता है। अन्यजातेरन्यजातेर्भाषणं प्रसवः शिशोः। मैथुनं च खरीसूतिदर्शन चापि भीप्रदम्॥19॥ अन्य जाति के जीव अन्य जाति के जीवों के साथ सम्भाषण या सङ्गम करें और अन्य जाति के जीवों से अन्य जाति के जीवों की सन्तति हो और गधी प्रसव करती दीखे तो भय हो- ऐसा जानना चाहिए। मांसाशनं स्वजातेश्च विनौतून्भुजगांस्तिमीन्। काकादिरपि भक्ष्यस्य गोपनं सस्यहानये॥20॥ बिलाव, सर्प और मछली- इन तीनों जीवों के अतिरिक्त शेष जीव यदि अपनी ही जाति के जीवों का मांस भक्षण करें तथा काग आदि भी जो उनका भक्ष छिपाएँ तो धान्य का विनाश होता है।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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