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________________ 136 : विवेकविलास दक्षा तुष्टा प्रियालापा पतिचित्तागुगामिनी। कालौचित्याद्वययकरी या सा लक्ष्मीरिवापरा॥ 165॥ जो स्त्री समझदार; सदा सन्तोषी; मधुर वचन बोलने वाली; पति का मन जैसे प्रसन्न रहे, वैसे ही आचरण करने वाली और समयोचित रूप से व्यय करने वाली हो, उसे लक्ष्मी के समान जानना चाहिए। शयिते दयिते शेतेऽस्मात्पूर्वं तु विबुध्यते। भुंक्ते भुक्तवति ज्ञात सत्कृत्या स्त्रीमतल्लिका॥ 166॥ जो स्त्री अपने पति के सो जाने पश्चात सोती है, उससे पूर्व जगे; उसके भोजन करने के बाद स्वयं करे और पति की सेवा किस प्रकार अच्छी तरह की जाए- यह भलीभाँति जानती हो, उसे श्रेष्ठ नारी समझना चाहिए। न कुत्सयेद्वरं बाला श्रुशुरप्रमुखांश्च या। ताम्बूलमपि नादत्ते दत्तमन्येन सोत्तमा॥167॥ जो स्त्री अपने पति और सास-ससुर आदि सहित अपने परिवार के दोष नहीं बताती हो और परपुरुष के दिए ताम्बूलादि का स्पर्श न करे, उस स्त्री को उत्तम जाने। कुलस्त्रिया न गन्तव्यमुत्सवे चत्वरेऽपि च। देवयात्राकथास्थाने न तथा रङ्गजागरे॥ 168॥ कुलीन स्त्री को कभी (अकेले) मेले या उत्सव में; चौराहे पर; यात्रा पर, कथा-स्थल, नाटक-लीला और जागरण में नहीं जाना चाहिए। सुपत्नीलक्षणं या दृष्ट्वा पतिमायान्तमभ्युत्तिष्ठति सम्भ्रमात्। तत्पादन्यस्तदृष्टिश्च दत्ते तस्यासनं स्वयम्॥ 169॥ भाषिता तेन सव्रीडं नम्रीभवति च क्षणात्। स्वयं सविनयं तस्य परिचर्यां करोति च ॥ 170॥ निर्व्याजहृदया पत्यौ श्वश्रूषु व्यक्तभक्तिभाक् । सदा नम्रा ननान्दृणां बद्धस्नेहा च बन्धुषु॥ 171॥ सपत्नीष्वपि सप्रीतिः परिवारेषु वत्सला। सनर्मपेशलालापा कमितुर्मित्रमण्डले॥ 172॥ या च तेवषिषु द्वेष संश्रेषकलुषाशया। गृहश्रीरिव सा साक्षानेहिनी गृहमेधिनाम्॥ 173॥ जो स्त्री अपने पति को आया जानकर शीघ्रता से उठ जाए और उसके पाँवों की ओर देखते हुए स्वयं आसन प्रदान करे; पति यदि बातचीत करे तो तत्काल लज्जा
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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