SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 134 : विवेकविलास अतीर्ध्यातिप्रसङ्गोऽतिदानमत्यागमस्तथा। चत्वारोऽमी न कर्तव्याः कामिभिः कामिनीष्वपि॥ 153॥ सकाम पुरुष को कभी कामिनियों से भी बहुत ईर्ष्या, अधिक प्रसङ्ग, अधिक दान और अधिक गमन- ये चार चीजें नहीं करनी चाहिए। अतीया॑तो हि रोषः स्यादुद्वेगोऽतिप्रसङ्गतः। लोभोऽतिदानतः स्त्रीणामत्यागमादलजता॥ 154॥ जो पुरुष स्त्री पर बहुत ईर्ष्या रखता है तो वह क्रोध का शिकार हो जाता है; बहुत प्रसङ्ग करने से उद्वेग पाता है, द्रव्यादि बहुत देने से स्त्री का लोभ बढ़ता है और नित्यगमन स्त्री निर्लत हो जाती है। अन्यदप्याह - वितन्वतीं क्षुतं जृम्भां स्नानपानाशनानि च। मूलकर्म च कुर्वाणां कुवेषा च रजस्वलाम्॥155॥ तथान्यनरसंयुक्तां पश्येत्कामी न कामिनीम्। एवं हि मानसं तस्यां विरज्येतास्य निश्चितम्॥ 156॥ कभी ऐसी स्त्री की ओर पुरुष को नहीं देखना चाहिए जो छींकती हो; जम्हाई लेती हो; स्नान करती हो; भोजन और लघुशङ्कादि करती हो। कुवेषा या गन्दे वस्त्रों में हो; रजस्वला हो और किसी पुरुष के साथ वार्तालाप करती हो। यदि ऐसा किया जाता है तो उक्त स्त्री से पुरुष का मन विरक्त हो जाता है। अत्यालोकादनालोकात्तथानालापनादपि। प्रवासादतिमानाच्च त्रुट्यति प्रेम योषिताम्॥ 157॥ बार-बार देखने से; बिल्कुल न देखने से; बहुत बोलने से; विदेशगमन से और अति अहङ्कार से स्त्री का प्रेम टूटता है।. विरक्तस्त्रीलक्षणं न प्रीतिवचनं दत्ते नालोकयतिं सुन्दरम्। उक्ता धत्ते क्रुधं द्वेषान्मित्रद्वेषं करोत्यलम्॥ 158॥ विरहे हृष्यति व्याजादीामपि करोत्यलम्। योगे सीदति साबाधं वदनं मोटयत्यथ॥ 159॥ शेते शय्यागता शीघ्रं स्पर्शादुद्विजते तराम्। कृतं किमपि न स्तौति विरक्तेर्लक्षणं स्त्रियाः॥ 160॥ जिस स्त्री का राग पुरुष से उतर गया हो वह प्रेम सहित नहीं बोलती है। अच्छी तरह सामने नहीं देखती; पुकारने पर क्रोध करती है; द्वेष रखकर पुरुष के
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy