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________________ 132 : विवेकविलास पद्मिन्यादिभेदेन स्त्री चतुर्विधा तदुक्तम् - पद्मिनी चित्रिणी चैव शङ्खिनी हस्तिनी तथा। तत्तदिष्टविधानेनानुकूल्या स्त्री विचक्षणैः॥ 141॥ विचक्षण पुरुषो को पद्मिनी, चित्रिणी, शंखिनी और हस्तिनी इन चारों प्रकार की स्त्रियों को शास्त्र में कहे हुए इष्ट प्रकार से अनुकूल रखना चाहिए। 141 ।। तत्र लक्षणमुक्तम् - हस्तिनी मद्यगन्धा च उग्रगन्धा च चित्रिणी। शङ्गिनी क्षारगन्धा च पद्मगन्धा च पद्मिनी॥142॥ हस्तिनी स्त्री की मद्य जैसी गन्ध होती है; चित्रिणी की उग्रगन्ध; शङ्गिनी की क्षारीय और पद्मिनी की कमल जैसी सुगन्ध होती है। हस्तिनी घुरुशोभा स्यात्कटिशोभा च चित्रिणी। शङ्खिनी पादशोभा च मुखशोभा च पद्मिनी॥ 143॥ हस्तिनी भेद वाली स्त्रियों के छतियें-उरु; चित्रिणी की कटि; शङ्खिनी के पाँव और पद्मिनी का मुँह बहुत सुन्दर होता है। हस्तिनी सूक्ष्मकेशा च वक्रकेशा च चित्रिणी। शङ्खिनी दीर्घकेशा च घनकेशा च पद्मिनी॥ 144॥ हस्तिनी के केश सूक्ष्म होते हैं; चित्रिणी के वक्रीय; शङ्खिनी के लम्बे और पद्मिनी के घने, गुच्छेदार होते हैं। तस्य वश्यप्रयोगविचारं - आसने वाथ शय्यायां जीवाने विनियोजयेत्। जायन्ते नियतं वश्याः कामिन्यो नात्र संशयः। 145॥ जिस नासिका में स्वर प्रवाहमान हो, उस ओर यदि स्त्री को आसन अथवा बिछौने पर बिठाया जाए जो वह निश्चय ही वश में होती है, इसमें कोई सन्देह नहीं। अर्गला रक्षणे स्त्रीणां प्रीतिरेवा निरर्गला। पदातिपरिवेषस्तुपत्यु क्लेशाय केवलम्॥ 146॥ पति की अनुपम प्रीति ही स्त्री को अनुचित मार्ग पर जाने से रोकती है। अन्यथा स्त्री के आस-पास उसकी रक्षा के लिए सेविका का परिवार रखना इसे केवल पति के क्लेश के लिए जानना चाहिए। * स्मरदीपिका में आया है- पद्मिनी चित्रिणी चैव शङ्गिनी हस्तिनी तथा। प्रत्येकं च वरस्त्रीणां ख्यातं जातिचतुष्टयम्॥ (लक्षणप्रकाश पृष्ठ 189 पर उद्धृत)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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