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________________ अथ दीपशयनवरवधूलक्षणजातकादीनां वर्णनं नाम पञ्चमोल्लासः : 131 जगत्समक्षं स्त्रीपुंसौ विवाहे दक्षिणं करम् । अन्योन्याव्यभिचाराय दत्तः किल परस्परम् ॥ 136 ॥ अतो व्यभिचरन्तौ तौ निजं पुण्यं विलुम्पतः । अन्योऽन्यघातकौ स्यातां परस्त्रीपुंगुहावपि ॥ 137 ॥ लोकाचार के अनुसार स्त्री और पुरुष दोनों विवाह के समय धर्म-अर्थ-काम इन तीनों का आचरण एक दूसरे को छोड़कर नहीं करेंगे- ऐसी प्रतिज्ञा कर जगत् के समक्ष परस्पर दाहिने हाथ को थामते हैं। अतः यदि स्त्री-पुरुष दोनों अपने दिए हुए वचन को न पालकर व्यभिचार करें, तो वे उसका पुण्य खो देते हैं और परस्पर - विश्वासघात करने वाले होते हैं। इसी प्रकार स्त्री परपुरुष के साथ व्यभिचार करे, तो वह पुरुष की विवाहिता स्त्री का घात करने वाली होती है और परस्त्री के साथ व्यभिचार करे तो परस्त्री के पति का घात करने वाला होता है, ऐसा जानना चाहिए। वयानुसारेणस्त्रीरञ्जननिर्देशमाह बाला खेलनकैः काले दत्तैर्दिव्यफलाशनैः । मोदते यौवनस्था तु वस्त्रालङ्करणादिभिः ॥ 138॥ हृष्येन्मध्यवयाः प्रौढा रतिकीडासु कौशलैः । वृद्धा तु मधुरालापैर्गौरवेण तु रज्यते ॥ 139 ॥ बाला स्त्री सदैव उचित अवसर पर दिए हुए खिलौने और उत्तम फल-फूल एवं उपहार-आहार से प्रसन्न होती है। तरुणी अच्छे वस्त्राभूषणों से प्रसन्न होती है । प्रौढ़ा स्त्री काम-क्रीड़ा में कुशलता देखकर प्रसन्न होती है जबकि वृद्धा स्त्री मधुर वचन- व्यवहार और आदर-सत्कार से प्रसन्न होती है । षोडशाब्दा भवेद्बाला त्रिंशताद्भूतयौवना । पञ्चपञ्चाशता मध्या वृद्धा स्त्री तदनन्तरम् ॥ 140 ॥ स्त्री 16 वर्ष की हो तो वहाँ बाला कही जाती है; 30 वर्ष तक की तरुणी; 50 वर्ष तक की मध्यमा या प्रौढ़ा और उसके ऊपर की उम्र वाली वृद्धा कहलाती है। * उक्त मत वात्स्यायन, कोक्कोक आदि ने दिया है। महाराणा कुम्भा ने कहा है कि सोलह वर्ष की कन्या बाला कही जाती है जबकि तरुणी स्त्री तीस वर्ष की वय वाली होती है। पचास वर्ष की आयु होने पर प्रौढ़ा और इसे अधिक वृद्धा होती है। बाला आहारादि बाह्यरति से अधिक प्रसन्न होती है जबकि तरुणी अन्तररति से तथा प्रौढ़ा अद्भुत प्रकार से सुरत करने से रञ्जित होती है। बाला स्त्रियाँ सदैव ताम्बूल, कुसुमहार से वशीभूत हो जाती हैं जबकि तरुणी आभूषण से, प्रौढ़ा अत्यन्त प्रेम के प्रदर्शन या मन्थन से और वृद्धा मधुर वचन व्यवहार से वशीभूत होती है— षोडशाब्दाः भवेद्बाला तरुणी त्रिंशवर्षिणी । पञ्चाशदवर्षिका प्रौढा वृद्धा स्त्री तदनन्तरम् ॥ भक्ष बाह्य रतैर्बाला तरुण्यभ्यन्तरेस्तथा । अद्भुतैः सुरतैः प्रौढा रज्यते कामिनी क्रमात् ॥ ताम्बूल कुसुमैरबाला भूषणैस्तरुणीं भजेत् । अत्यन्त मन्थनैः प्रौढा वृद्धा मधुरजल्पनैः ॥ (कामराजरतिसार 3, 76-78)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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