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________________ 122 : विवेकविलास जन्मतः प्रथमे त्र्यंशे( त्वंशे!) द्वितीये च तृतीयके। भोजनावसरे दुःख केऽप्याहुः श्रीमतामपि॥83॥ आवर्ता दक्षिणाः शस्ताः साङ्गुष्ठाङ्गुलिपर्वसु। इत्यङ्गुलीलक्षणं। किसी की हथेली में तर्जनी व मध्यमा के मध्य छिद्र दीखे तो आयु के प्रथम तृतीयांश (तीसरे भाग) में, मध्यमा और अनामिका के बीच में छिद्र हो तो आयु के द्वितीय तृतीयांश और अनामिका व कनिष्ठा के मध्य में छिद्र दिखाई दे तो आयु के तृतीय तृतीयांश में बड़े भाग्यशाली लोग भी भोजन को लेकर दुखी होते हैं, ऐसा कतिपय आचार्यों का मत है। अंगूठे और अन्य चारों अङ्गलियों के अग्रभाग में दाहिनी ओर आवर्त (भँवरियाँ) हों तो उनको श्रेष्ठ जानना चाहिए। अथ नखलक्षणं - ताम्रस्निग्धोचिछखोतुङ्गपर्वार्धोत्था नखाः शुभाः॥84॥ (हथेली के नाखून यदि) लाल, स्निग्ध, अर्ण वाले, ऊँचे और अन्तिम पर्व (जोड़) के अर्द्ध भाग से निकले हुए हों तो शुभ जानने चाहिए। श्वेतैर्यतित्वमस्थाभै खैः पीतैः सरोगता।। पुष्पितैर्दुष्टशीलत्वं क्रौर्यं व्याघ्रोपमै खैः॥85॥ .. जिसके नख श्वेत हों तो यतिपन, अस्थियों जैसे वर्ण के हों तो दरिद्रता, पीले "हों तो रोग, पुष्प वाले (श्वेत बिन्दु युक्त) हों तो कुशीलपन और बाघनख जैसे हों तो क्रूरपन को दर्शाते हैं। शुक्त्याभैः श्यामलैः स्थूलैः स्फुटितात्रैश्च नीलकैः। अधोतरूक्षवक्रैश्च नखैः पातकिनोऽधमाः॥ 86॥ जिनके नख सीप जैसे, श्यामवर्ण, स्थूलाकार, अग्रभाग में फूटे हुए, नीलवर्ण, निस्तेज, सूखे हुए और वक्री हों वे अधम या पापी जानने चाहिए। नखेषु बिन्दवः श्वेताः पाण्योश्चरणयोरपि। आगन्तवः प्रशस्ताः स्युरिति भोजनृपोऽभ्यधात्॥87॥ हाथ और पैर के नख पर भी यदि श्वेत बिन्दु उत्पन्न होकर कई दिन रहने के उपरान्त नष्ट हो जाते हैं तो वे श्रेष्ठ है, ऐसा भोजराज का मत है। लक्षणप्रकाश में यह श्लोक इस प्रकार आया है- अपसव्यसव्यकरयोनखेषु सितबिन्दवश्चरणयोर्वा । आगन्तवः प्रशस्ताः पुरुषाणां भोजराजमतम् ।। (पृष्ठ 81) मित्रमिश्र ने इस श्लोक को सामुद्रतिलक से उद्धत बताया है। सामुद्रतिलककार ने भोजकृत किसी सामुद्रिकशास्त्र का होना स्वीकारा हैश्रीभोजनृपसुमन्तप्रभृतीनामग्रतोपि विद्यन्ते। सामुद्रिकशास्त्राणि प्रायो गहनानि तानि परम्॥ (सामुद्रिकतिलक 1, 11) साथ ही सामुद्रिकतिलककार ने (1, 199 पर) उक्त श्लोक दिया भी है।
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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